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Lazy Eye : आंखों की इस बीमारी से जल्द मिलेगा छुटकारा, GSVM में आधुनिक इलाज पर हो रहा रिसर्च!

कानपुर मेडिकल कॉलेज जीएसवीएम (GSVM Medical College) में अब एंब्लियोपिया (Lazy Eye) जैसी बीमारी के कारण व उसके आधुनिक उपचार पर शोध किया जा रहा है। इसके लिए नेत्र रोग विभाग की डॉ. पारुल सिंह ने बच्चों का स्क्रीनिंग भी करनी शुरू कर दी है। यह बीमारी जन्मजात बच्चों की आंखों में होती है। इस बीमारी को लेजी आई के नाम से भी जानते है ।

क्या है एंब्लियोपिया?

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एंब्लियोपिया यानी मंद दृष्टि (Amblyopia) एक ऐसी बीमारी होती है जो जन्म के समय ही बच्चों की एक आंख में हो जाती है। इस बीमारी के होने से बच्चों को दूसरी आंख के मुकाबले उस आंख से कम दिखाई देता है। यह बच्चों में दृष्टिहानी का सबसे बड़ा कारण माना जाता है। बच्चे छोटे होने के कारण अपनी समस्या को बता नहीं पाते है। इस कारण इसका पता काफी समय बाद लग पाता हैं।

कानपुर मेडिकल कालेज की डॉ. पारुल सिंह ने बताया कि यह समस्या हर बच्चे में नहीं होती है। यदि ओपीडी में 100 बच्चे आते है तो उनमें से 3 बच्चे इस बीमारी से पीड़ित होते है। इसमें समस्या तब होती है जब बच्चों की उम्र बढ़ती जाती है। इसके साथ ही आंखों की रोशनी भी कम होती जाती है।

बच्चों की शुरू की गई स्क्रीनिंग

Lazy Eye Research is being done on Amblyopia eye disease modern treatment in GSVM Medical College

डॉ. पारुल सिंह ने बताया कि इसमें शोध करने का मकसद सिर्फ यह है कि इस बीमारी का पहले तो कारण पता चल सके। इसके अलावा आधुनिक इलाज के माध्यम से अच्छे से अच्छा उपचार बच्चों को मिल जाए। इस लिए बीमारी के कारण के साथ-साथ इलाज पर भी हम लोग शोध कर रहे है। इसमें जानना चाह रहे है कि किस तरह से मरीजों को उपचार देने से वह जल्द ठीक हो सकते है।

3-5 साल की उम्र में आंखों की जांच जरूरी

उनके मुताबिक यदि इस बीमारी से बच्चों को बचाना है तो माता-पिता को इसके लिए जागरूक होना जरूरी है। जैसे ही बच्चा स्कूल जाने वाला होने लगे या उसकी उम्र 3 से 5 साल की हो, तो पहले ही उसकी आंखों की जांच करा लेनी चाहिए। जितनी कम उम्र में यह बीमारी पता चल जाएगी, उतना ही आंखों के लिए अच्छा होता है। वैसे तो 18 साल तक के बच्चों में इस बीमारी को इलाज के माध्यम से ठीक किया जा सकता हैं। इसका इलाज काफी लंबा चलता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ आंखों की रोशनी भी कम होती जाती है।

स्क्रीनिंग में कई बदलाव देखने को मिले

डॉ. पारुल के मुताबिक अभी जिन बच्चों की स्क्रीनिंग की गई है, उनकी आंखों में कई बदलाव देखने को मिले है। आम लोगों के मुताबिक एंब्लियोपिया से पीड़ित बच्चों की आंखों में कोराइडल की परत मोटी पाई गई है। इसके अलावा आरएनएफ में बदलाव देखने को मिला है। अब इस बीमारी के होने के कारण की तलाश की जा रही है।

उन्होंने बताया कि फिलहल किसी बच्चे में एंब्लियोपिया है तो उसके लक्षण समझ में आने लगते है, जैसे कि धुंधला दिखना, आंखों का भैंगापन होना। यदि इस तरह के लक्षण दिखे तो तुरंत डॉक्टरों से परामर्श लेकर उपचार शुरू कर देना चाहिए ।

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