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Hathras में बुर्का पहने शख्स को चोर समझकर पीटा, निकला किन्नर — प्रेम कहानी के लिए आया था घर देखने

Hathras

Hathras wearing burqa: उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में एक हैरान कर देने वाली घटना सामने आई है। सिकंदराराऊ थाना क्षेत्र के मोहल्ला नौखेल में रविवार रात बुर्का पहने एक शख्स को स्थानीय लोगों ने चोर समझ लिया और उसे पकड़कर जमकर पीट दिया। लोगों को उस शख्स की गतिविधियाँ संदिग्ध लगीं, जिसके बाद भीड़ ने उसे बुर्का उतारने के बाद पहचान किया तो वह किन्नर निकला। इस घटना ने इलाके में भारी सनसनी मचा दी।

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स्थानीय लोगों का कहना था कि बुर्का पहने शख्स का व्यवहार संदिग्ध था। मोहल्ले में घूमते हुए वह कई बार लोगों के सामने आया और उसकी हरकतें कुछ गलत लग रही थीं। इसके कारण लोगों ने उस पर शक करना शुरू कर दिया। भीड़ ने उसे पकड़ लिया और जब बुर्का उतारा तो वह किन्नर निकला। भीड़ में हंगामा और तनाव बढ़ गया। इस दौरान किन्नर ने हाथ जोड़कर माफी मांगी और लोगों को समझाने की कोशिश की। उसने बताया कि उसकी नीयत चोरी की नहीं थी, बल्कि वह एक लड़की से प्यार करता है और उसके घर का हाल जानने के लिए आया था।

इस पूरे घटनाक्रम के दौरान Hathras पुलिस को सूचना दी गई। पुलिस मौके पर पहुंची और भीड़ को नियंत्रित किया। पुलिस ने किन्नर को भीड़ से बचाकर अपने कब्जे में लिया। पूछताछ में किन्नर ने बताया कि वह अपने प्रेमी से मिलने आया था और चोरी या किसी गलत कार्य का कोई इरादा नहीं था। पुलिस ने उसकी बातों को समझा और स्थिति को शांत किया। अंततः किन्नर को हिरासत में लेने के बाद छोड़ दिया गया।

इस घटना ने बुर्का पहनने और समाज में पनप रहे पूर्वाग्रहों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। स्थानीय लोगों की गलतफहमी और जल्दबाजी ने एक मासूम व्यक्ति के साथ हिंसा को जन्म दिया। यह मामला दिखाता है कि समाज में असमंजस और संदेह की भावना किस तरह बिना जांच-परख के भड़क सकती है। पुलिस की भूमिका इस घटना में सही समय पर भीड़ को काबू में करना और पीड़ित को सुरक्षा देना रही।

Hathras की इस घटना ने सोशल मीडिया और स्थानीय स्तर पर भी बहस छेड़ दी है। कई लोग किन्नरों और ट्रांसजेंडर समुदाय के प्रति बढ़ती असहिष्णुता और हिंसा की आलोचना कर रहे हैं। वहीं कुछ लोग सुरक्षा के नाम पर ऐसी घटनाओं के प्रति जागरूक रहने की बात कह रहे हैं। इस पूरे विवाद ने प्रेम और पहचान के बीच की जटिलताओं को सामने लाया है।

इस घटना से यह भी स्पष्ट हुआ कि पूर्वाग्रह और डर कैसे सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित कर सकते हैं और किसी भी व्यक्ति को बिना पुष्टि किए गलत निर्णय का शिकार बना सकते हैं। पुलिस और समाज दोनों को चाहिए कि वे संवेदनशीलता और समझदारी से इस तरह के मामलों को संभालें ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न दोहराई जाएं।

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