UP Politics: उत्तर प्रदेश में जैसे-जैसे चुनाव पास आता जा रहा वैसे ही राजनीतिक पार्टियों में भी पारा बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। वहीं अब राजनीति में एक बार फिर मूर्तियां और पार्क चर्चा का विषय बना हुआ है। पहले बहुजन समाज पार्टी (BSP) सरकार के तहत स्मारक मॉडल था, फिर समाजवादी पार्टी के लोहिया और जनेश्वर मिश्रा पार्क, और अब भारतीय जनता पार्टी (BJP) का राष्ट्र प्रेरणा स्थल। इसके ज़रिए BJP अब अपनी राजनीतिक विरासत को आकार देने में लगी है।
दरअसल, यूपी में जैसे-जैसे सत्ता बदलती गई, वैसे ही पहचान की राजनीति भी बदली। मायावती के कार्यकाल में हाथी पार्क, कांशीराम स्मारक और दलित महापुरुषों की भव्य मूर्तियां बनाई गईं। इसके बाद समाजवादी पार्टी ने लखनऊ में लोहिया पार्क और जनेश्वर मिश्रा पार्क के ज़रिए विकास और समाजवाद का संदेश दिया, और अब BJP सरकार अटल बिहारी वाजपेयी, दीनदयाल उपाध्याय और श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नाम पर बड़े-बड़े स्मारक और प्रेरणा स्थल बना रही है।
BJP सिर्फ़ दिखावटी सम्मान देती है-फखरुल हसन चांद
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता फखरुल हसन चांद ने कहा कि महान नेताओं का सम्मान करना अच्छी बात है, लेकिन BJP सिर्फ़ दिखावटी सम्मान देती है। अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर बनी यूनिवर्सिटी अभी भी दूसरे कैंपस से चल रही है। जब हमने अपने महान नेताओं की मूर्तियां बनवाईं, तो हमने उनके नाम पर अस्पताल भी खोले और लोगों को फ़ायदा पहुंचा रहे हैं। वहीं BSP ने कहा कि उन्होंने उन लोगों की मूर्तियां बनवाईं जिन्हें सही सम्मान नहीं मिला था। BSP की UP इकाई के अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने कहा कि हमारे बाबा साहेब (बी.आर. अंबेडकर) ने संविधान बनाया, लेकिन इसके बावजूद हमारे महान नेताओं को कोई सम्मान नहीं दिया गया।
BJP प्रवक्ता अवनीश त्यागी ने कहा कि ये सिर्फ़ मूर्तियां नहीं हैं; ये नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा के स्थान हैं। विपक्ष हर अच्छे काम में राजनीति देखता है।
2027 के चुनावों इसका कितना दिखेगा असर ?
वरिष्ठ पत्रकार विजय दुबे ने कहा कि BJP 2027 के चुनावों को ध्यान में रखते हुए अपना राजनीतिक आधार मज़बूत करने का काम कर रही है। अटल बिहारी वाजपेयी, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय जैसे नेताओं पर ध्यान केंद्रित करके पार्टी अपनी विचारधारा को आगे बढ़ा रही है। स्मारकों और प्रेरणा स्थलों के ज़रिए मतदाताओं तक संदेश पहुंचाने की रणनीति बनाई जा रही है।
UP की राजनीति में मूर्तियां अब सिर्फ़ पत्थर और कांसे की नहीं रह गई हैं, बल्कि सत्ता का प्रतीक बन गई हैं। हर सरकार अपने प्रतीकों के ज़रिए अपनी विरासत को आकार दे रही है। सवाल यह है: क्या जनता को इससे सच में विकास मिल रहा है, या यह सिर्फ़ पॉलिटिकल मैसेजिंग का एक ज़रिया बन गया है?
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