Sambhal report 2025: 28 अगस्त 2025 को संभल हिंसा की जांच कर रही तीन सदस्यीय न्यायिक समिति ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपनी 450 पन्नों की विस्तृत रिपोर्ट सौंपी। यह रिपोर्ट 24 नवंबर 2024 को शाही जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान भड़की हिंसा और उससे जुड़े विवादों का सच सामने लाती है। समिति की अध्यक्षता हाईकोर्ट के पूर्व जज देवेंद्र कुमार अरोड़ा ने की, जिसमें पूर्व IAS अमित मोहन और पूर्व IPS अरविंद कुमार जैन सदस्य थे।
रिपोर्ट ने स्पष्ट किया कि Sambhal की स्थिति महज कानून-व्यवस्था का मामला नहीं बल्कि एक गहरी सांस्कृतिक और जनसांख्यिकीय चुनौती है। यहां हिंदू जनसंख्या में भारी कमी आई है, जबकि मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ी है। स्थानीय लोगों के अनुसार, यह बदलाव अचानक नहीं बल्कि सुनियोजित ढंग से हुआ। रिपोर्ट इस पहलू को नजरअंदाज नहीं करती और चेतावनी देती है कि अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो हिंदू समाज का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।
हिंसा का केंद्र बिंदु बना हरिहर मंदिर-शाही जामा मस्जिद विवाद। हिंदू पक्ष ने दावा किया कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष हैं और इसी आधार पर सिविल कोर्ट ने एएसआई को सर्वे का आदेश दिया। 24 नवंबर को सर्वे शुरू हुआ तो भारी विरोध हुआ और देखते ही देखते भीड़ बेकाबू हो गई। पथराव, आगजनी और गोलियों की गूंज ने पूरे शहर को दहला दिया। इस घटना में पांच लोगों की जान गई और कई पुलिसकर्मी घायल हुए।
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रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि Sambhal लंबे समय से कट्टरपंथी संगठनों और आतंकी गतिविधियों का गढ़ बन चुका है। सूत्रों का कहना है कि यहां विदेशी फंडिंग और संगठित नेटवर्क सक्रिय हैं, जो माहौल बिगाड़ने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। समिति ने प्रशासन को चेताया है कि सुरक्षा एजेंसियों को इस क्षेत्र पर कड़ी नजर रखनी होगी।
कानूनी मोर्चे पर मामला अब भी उलझा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाकर सर्वे रिपोर्ट को सील करने का आदेश दिया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सर्वे आदेश को बरकरार रखा और मामले को आगे बढ़ाने का निर्देश दिया। मस्जिद पक्ष उपासना स्थल अधिनियम, 1991 का हवाला दे रहा है, जबकि हिंदू पक्ष मंदिर के ऐतिहासिक अधिकार की मांग कर रहा है।
राजनीतिक दलों ने भी इस विवाद को अपनी-अपनी तरह से भुनाया। सपा ने भाजपा पर तनाव भड़काने का आरोप लगाया, भाजपा ने पलटवार किया कि विपक्षी नेताओं ने हिंसा को हवा दी। कांग्रेस ने दोनों पर हमला बोला और शांति बनाए रखने की अपील की।
Sambhal की रिपोर्ट केवल एक प्रशासनिक दस्तावेज नहीं, बल्कि हिंदू समाज के लिए एक गंभीर चेतावनी है। यह बताती है कि सांस्कृतिक पहचान और अस्तित्व की रक्षा के लिए अब ठोस कदम उठाना जरूरी हो चुका है।