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जम्मू-कश्मीर पर Supreme Court के फैसले पर OIC का बयान, 57 इस्लामिक देशों के संगठन ने कही बड़ी बात!

OIC statement on Supreme Court's decision on Jammu Kashmir

OIC Statement : सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर (Supreme Court Verdict on Jammu-Kashmir) से धारा 370 हटाने के फैसले को सही बताया। आर्टिकल 370 हटने के बाद देश में तो बवाल हुआ ही अब OIC ने भी इसको लेकर प्रतिक्रिया दी है। दरअसल अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देती है और इसको निरस्त करने वाले केंद्र सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा है जिसे लेकर अब ओआईसी ने बयान जारी कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चिंताजनक बताया।

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ओआईसी की ओर से कहा गया है कि इस्लामिक संगठन भारत सरकार (Indian Government) की एकतरफा कार्रवाई को बरकरार रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चिंता (OIC on Supreme Court Decision) व्यक्त करता है। जिससे जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को छीन लिया गया है। बता दें कि इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) 57 इस्लामिक देशों से मिलकर बना एक संगठन है।

संगठन (Organisation of Islamic Cooperation) ने अपने बयान में कहा, ‘ओआईसी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त क्षेत्र में 5 अगस्त 2019 से बदलाव के मकसद से उठाए गए सभी अवैध और एकतरफा उपायों को उलटने के अपने आह्वान को दोहराता है।’

ओआईसी का कहना है कि संगठन जम्मू-कश्मीर के लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार के साथ अपनी एकजुटता दिखाता है। संगठन अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आह्वान करता है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रासंगिक प्रावधानों के अनुसार जम्मू-कश्मीर मुद्दे का हल निकाला जाए।

गौरतलब है कि इसी हफ्ते सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के मोदी सरकार के फैसले को सही ठहराया था। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। कोर्ट के इस फैसले से पाकिस्तान भी तिलमिला उठा था।

SC के फैसले पर पाकिस्तान भी तिलमिलाया

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि ‘जम्मू-कश्मीर का विवाद एक अंतरराष्ट्रीय विवाद है, जो सात दशकों से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एजेंडे में शामिल है। जम्मू-कश्मीर को लेकर अंतिम फैसला संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों और कश्मीरी लोगों की इच्छा के अनुसार किया जाना है। भारत को कश्मीरी लोगों और पाकिस्तान की इच्छा के खिलाफ इस पर एकतरफा फैसला लेने का कोई अधिकार नहीं है।’

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