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महिलाओं की आज़ादी पर मौलाना का हमला, समाज में उठा सवाल

Saharanpur News: सहारनपुर में एक बार फिर महिलाओं की स्वतंत्रता पर कट्टरपंथी बयानबाज़ी ने विवाद खड़ा कर दिया है। देवबंद के मौलाना कारी इसहाक गोरा ने कहा कि मुस्लिम महिलाओं को रातभर चलने वाले गुघाल मेले में नहीं जाना चाहिए। उनका तर्क है कि यह इस्लामी उसूलों के खिलाफ है और इससे नई नस्ल के संस्कार बिगड़ते हैं। लेकिन असली सवाल यह है कि महिलाओं के जीवन पर पहरा लगाने का हक़ आखिर किसे दिया गया है?

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Saharanpur मौलाना ने अपने वीडियो संदेश में दावा किया कि मेलों में मुस्लिम परिवार पूरी रात वक्त बर्बाद करते हैं और सुबह की नमाज़ से दूर हो जाते हैं। उन्होंने महिलाओं की भागीदारी को “इज्ज़त और हिफाज़त” के लिए ख़तरा बताया। यह सोच वही पुरानी परंपरा दोहराती है, जिसमें औरत की आज़ादी को शक की नज़र से देखा जाता है।

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आज जब महिलाएं हर क्षेत्र में कामयाबी की नई कहानियां लिख रही हैं, ऐसे बयान उन्हें घर की चारदीवारी तक सीमित करने की कोशिश करते हैं। असलियत यह है कि मेलों और त्योहारों में शामिल होना किसी भी महिला की व्यक्तिगत पसंद है, न कि मज़हबी अपराध। समाज की रौनक और संस्कृति में महिलाओं की बराबर की हिस्सेदारी है, और इसे रोकना उनके अधिकारों पर हमला है।

धार्मिकता और कट्टरपंथ के नाम पर महिलाओं को पीछे धकेलना लोकतंत्र और संविधान की आत्मा के खिलाफ है। इस्लाम ने भी बराबरी और इज्ज़त की तालीम दी है, लेकिन कुछ उलेमा इसे पाबंदी का औज़ार बनाकर महिलाओं को नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं।

Saharanpur मौलाना के इस बयान से यह साफ़ होता है कि कट्टर सोच अब भी महिलाओं की तरक्की से डरती है। लेकिन भारतीय महिलाएं यह साबित कर चुकी हैं कि उनकी आज़ादी किसी मौलाना की इजाज़त पर निर्भर नहीं है। उन्हें मेले में जाना है या रातभर उत्सव मनाना है—यह उनका जन्मसिद्ध अधिकार है।

 

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