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संत विवाद: रामभद्राचार्य के बयान पर अविमुक्तेश्वरानंद ने साधा निशाना ‘आपको दिखाई नहीं देता तो क्या सुनाई…’

Avimukteshwaranand

Avimukteshwaranand On Rambhadracharya: तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामभद्राचार्य और ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के बीच एक नया विवाद खड़ा हो गया है। यह विवाद रामभद्राचार्य की उस टिप्पणी से शुरू हुआ जिसमें उन्होंने वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज के बारे में कहा था कि उन्हें संस्कृत का एक भी अक्षर नहीं आता। इस बात पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए एक सार्वजनिक मंच से रामभद्राचार्य पर बिना नाम लिए कटाक्ष किया।

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Avimukteshwaranand ने कहा, “आपको दिखाई नहीं देता तो क्या सुनाई भी नहीं दे रहा?” उन्होंने आगे कहा कि प्रेमानंद महाराज दिनभर “राधे-राधे,” “कृष्ण-कृष्ण,” और “हे गोविंद” जैसे संस्कृत के शब्दों का ही जाप करते हैं। अविमुक्तेश्वरानंद ने सवाल उठाया कि जब प्रेमानंद भगवान के नाम का जाप कर रहे हैं, जो कि संस्कृत में ही हैं, तो क्या इसका मतलब यह नहीं है कि वे संस्कृत बोल रहे हैं? उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति दिनभर भगवान के नाम का उच्चारण कर रहा है, वह असल में संस्कृत ही बोल रहा है। यह बयानबाजी सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है और धार्मिक जगत में हलचल मचा दी है।

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इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने प्रेमानंद महाराज के बिना किडनी के जीवन जीने को कोई चमत्कार मानने से इनकार कर दिया था। रामभद्राचार्य ने कहा था कि यह कोई चमत्कार नहीं है और वे चमत्कार को नहीं मानते। इसी संदर्भ में उन्होंने प्रेमानंद के संस्कृत ज्ञान पर भी टिप्पणी कर दी थी।

बढ़ते विवाद को देखते हुए, जगद्गुरु रामभद्राचार्य के उत्तराधिकारी आचार्य रामचंद्रदास ने सामने आकर सफाई दी। उन्होंने कहा कि जगद्गुरु रामभद्राचार्य को प्रेमानंद जी से कोई ईर्ष्या नहीं है और उनका बयान सिर्फ चमत्कार को लेकर था। आचार्य रामचंद्रदास ने स्पष्ट किया कि रामभद्राचार्य यह बताना चाहते थे कि बिना किडनी के जीवित रहना कोई चमत्कार नहीं, बल्कि विज्ञान का विषय भी हो सकता है।

इस पूरे मामले ने धार्मिक नेताओं के बीच के मतभेदों को सार्वजनिक कर दिया है। एक तरफ Avimukteshwaranand और उनके समर्थक हैं जो प्रेमानंद महाराज का बचाव कर रहे हैं और रामभद्राचार्य के बयान को अनुचित बता रहे हैं। दूसरी तरफ रामभद्राचार्य के अनुयायी हैं जो उनके पक्ष में खड़े हैं और कह रहे हैं कि उन्होंने सिर्फ एक अकादमिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखा था, और इसे व्यक्तिगत विवाद का रूप नहीं दिया जाना चाहिए। यह विवाद इस बात पर बहस छेड़ रहा है कि क्या संतों को सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे पर टिप्पणी करनी चाहिए या सद्भाव बनाए रखना चाहिए।

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