Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि यदि कोई सरकारी कर्मचारी या पुलिस अधिकारी अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर अवैध कार्य करता है, तो उस पर प्राथमिकी दर्ज करने से पहले अनुमति लेना आवश्यक नहीं है। न्यायमूर्ति राजवीर सिंह ने यह टिप्पणी उन पुलिसकर्मियों की याचिका खारिज करते हुए की, जिन्होंने अपने खिलाफ दर्ज केस की कार्यवाही रद्द करने की मांग की थी।
यह मामला फर्रुखाबाद जिले से जुड़ा था, जहां एक डॉक्टर ने आरोप लगाया था कि 28 जून 2022 को रात में कुछ पुलिसकर्मियों ने उन्हें रास्ते में रोका, मारपीट की, गहने व पैसे छीने और कन्नौज ले जाकर बंधक बनाया। पुलिसकर्मी दावा कर रहे थे कि वे ड्यूटी पर थे और सीआरपीसी की धारा 197 के तहत बिना अनुमति उन पर केस नहीं चलाया जा सकता। लेकिन कोर्ट ने पाया कि वे घटना के समय गश्त पर नहीं थे और उनके कृत्य का ड्यूटी से कोई लेना-देना नहीं था।
इसी के साथ Allahabad High Court ने एक अन्य जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान फतेहपुर के जिलाधिकारी को भी कड़ी फटकार लगाई। डीएम ने कोर्ट में दायर शपथपत्र में कहा कि वे न्यायालय की गरिमा बनाए रखने का आश्वासन देते हैं। कोर्ट ने इस भाषा पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह सोच गलत है कि कोई अधिकारी न्यायपालिका की गरिमा को नुकसान पहुंचा सकता है। कोर्ट ने डीएम से स्पष्टीकरण माँगा है कि उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों न की जाए।
इसके अलावा आजमगढ़ के एक मामले में गांवसभा की भूमि पर अतिक्रमण को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सिविल जज को कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया है। जिलाधिकारी की रिपोर्ट पर असंतोष जताते हुए कोर्ट ने आदेश दिया कि छह भूखंडों का तकनीकी सर्वे कराकर 2 मई तक रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए। साथ ही सर्वे की वीडियोग्राफी और पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं।
Allahabad High Court के इन आदेशों से स्पष्ट है कि न्यायालय किसी भी प्रकार की प्रशासनिक लापरवाही या जनहित के उल्लंघन को सहन नहीं करेगा, चाहे आरोपी कितना भी उच्च पद पर क्यों न हो।