Bulandshahr violence: 3 दिसंबर 2018 को उत्तर प्रदेश के Bulandshahr जिले के स्याना क्षेत्र के चिंगरावठी गांव में उस वक्त माहौल बेकाबू हो गया जब गोहत्या की अफवाह के बाद भारी हिंसा फैल गई। इस हिंसा में भीड़ ने पुलिस पर पथराव किया, कई वाहन फूंक दिए और अंत में स्याना के तत्कालीन एसएचओ सुबोध कुमार सिंह और गांव के 20 वर्षीय युवक सुमित कुमार की गोली लगने से मौत हो गई। यह मामला पूरे देश में सुर्खियों में आ गया था और कानून-व्यवस्था पर कई सवाल खड़े हुए थे।
- विज्ञापन -#बुलंदशहर हिंसा, इंस्पेक्टर की हत्या मामले में बजरंग दल नेता रहे योगेश राज की मुख्य भूमिका थी
"कोर्ट ने सभी दोषियों के खिलाफ राजद्रोह की धारा हटा दी"
38 आरोपियों को दोषी माना गया
योगेश राज समेत 33 लोग भीड़ उकसाकर बलवा कराने, हिंसा, आगजनी, 307 के दोषी है
5 आरोपियों को बलवा,… pic.twitter.com/ixkkIAKNJS
— Narendra Pratap (@hindipatrakar) July 30, 2025
मामले की गंभीरता को देखते हुए Bulandshahr पुलिस ने इस हिंसा में शामिल 44 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। इन लोगों पर हत्या, आगजनी, दंगा, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और हत्या के प्रयास जैसे गंभीर आरोप लगे थे। मुकदमे के दौरान पांच आरोपियों की मौत हो गई, जबकि एक आरोपी उस समय नाबालिग था, इसलिए उसका मामला बाल न्यायालय में चल रहा है। बाकी बचे 38 आरोपियों को अदालत ने 30 जुलाई को दोषी करार दिया। इनमें से पांच लोगों—प्रशांत नट, डेविड, जॉनी, राहुल और लोकेंद्र मामा—को धारा 302 (हत्या) के तहत दोषी माना गया है।
विशेष लोक अभियोजक यशपाल सिंह राघव ने बताया कि बाकी 33 आरोपियों को अन्य गंभीर धाराओं में दोषी पाया गया है। अदालत में सुनवाई के दौरान वीडियो फुटेज, कॉल डिटेल्स और चश्मदीद गवाहों की गवाही के आधार पर अभियोजन ने सभी आरोप साबित किए। इस मामले में चर्चित नाम योगेश राज (बजरंग दल से जुड़े) और शिखर अग्रवाल (निषाद पार्टी के पूर्व प्रदेश महासचिव) भी शामिल हैं।
इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह के परिवार को आज मिला इंसाफ,हिंसा में सभी 38 आरोपी दोषी करार.
यूपी के जनपद बुलन्दशहर में 3 दिसम्बर 2018 को बजरंग दल के नेता योगेश राज के नेतृत्व में इलाके में हुई गौकशी के खिलाफ सैकड़ो लोगों ने पुलिस पर अटैक किया.
पुलिस चौकी में तोड़फोड़ की गई, वाहन… pic.twitter.com/nZLgL9odbd
— Emperor (@Madhav1192) July 30, 2025
आज, 1 अगस्त को एडीजे-12 गोपालजी की अदालत में दोषियों की सजा पर बहस होगी, जिसके बाद दोपहर में फैसला सुनाया जाएगा। पुलिस ने अदालत में सभी आरोपियों को कड़ी सुरक्षा के बीच पेश करने की योजना बनाई है और कोर्ट परिसर में सुरक्षा के खास इंतजाम किए गए हैं।
छह साल बाद आ रहा यह फैसला न केवल पीड़ित परिवारों के लिए न्याय की उम्मीद है, बल्कि भीड़तंत्र के खिलाफ एक कानूनी चेतावनी भी मानी जा रही है। यह घटना एक मिसाल बन सकती है कि किस तरह अफवाहों और धार्मिक भावनाओं के नाम पर हिंसा को बढ़ावा देने वालों को कानून के तहत सख्त सजा दी जा सकती है।