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रिटायरमेंट से पहले ही बर्खास्त हुए KGMU के डॉ. एके सचान, 12 साल के विवादों पर गिरा गाज

KGMU Dr. Sachan sacked: लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) में वर्षों से विवादों में घिरे फार्माकोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. एके सचान को रिटायरमेंट से तीन दिन पहले बर्खास्त कर दिया गया है। उनका सेवानिवृत्त होना 15 जुलाई को तय था, लेकिन विश्वविद्यालय ने 12 जुलाई को ही उन्हें सेवा से हटा दिया। यह फैसला अचानक नहीं था, बल्कि उनके ऊपर पिछले 12 सालों से लगे गंभीर आरोपों का परिणाम है, जिनकी फाइलें हर कुलपति के कार्यकाल में खुलती रहीं, लेकिन कार्रवाई नहीं हो पाती थी।

करोड़ों की संपत्ति और नकद बरामदगी

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साल 2013 में आय से अधिक संपत्ति के मामले में डॉ. सचान के घर और ऑफिस से करीब 1.76 करोड़ रुपये नकद मिले थे। इसके बाद उनकी पत्नी डॉ. ऋचा मिश्रा ने आठ करोड़ रुपये की अघोषित आय सरेंडर की थी। जांच में कई बैंक खातों का खुलासा हुआ, जिनसे करोड़ों के लेनदेन किए गए थे। यह मामला अब भी अदालत में चल रहा है।

निजी संस्थानों से सीधा संबंध

सरकारी सेवा में रहते हुए भी डॉ. सचान निजी अस्पतालों और कॉलेजों से जुड़े रहे। इंदिरा नगर के शेखर मल्टीस्पेशिएलिटी हॉस्पिटल में वह प्रबंध निदेशक थे। इसके अलावा बाराबंकी और शाहजहांपुर में हिंद इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के नाम से कॉलेज चला रहे हैं, जो उनके और उनकी पत्नी के ट्रस्ट द्वारा संचालित हैं। इसी ट्रस्ट के जरिए शेखर स्कूल ऑफ नर्सिंग भी चलाया जा रहा है।

फर्जी दवा और आंतरिक शिकायतें

KGMU डॉ. सचान पर नकली दवाओं के व्यापार का आरोप खुद उनकी पत्नी ने लगाया था। इसके साथ ही पिछले साल एक रेजिडेंट डॉक्टर ने भी उनके खिलाफ शिकायत की, जिस पर केजीएमयू की अनुशासनात्मक समिति ने जांच की थी। हालांकि वर्षों तक ये मामले दबाए जाते रहे।

ईडी की रिपोर्ट बनी निर्णायक

2023 में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने डॉ. सचान के खिलाफ साक्ष्यों के साथ विस्तृत रिपोर्ट तैयार की। इसमें उनकी संपत्तियों, बैंक खातों और निजी प्रैक्टिस से जुड़े दस्तावेज शामिल थे। रिपोर्ट में कहा गया कि डॉ. सचान सरकारी डॉक्टर होते हुए भी निजी प्रैक्टिस में लिप्त थे, जो केजीएमयू एक्ट का उल्लंघन है। यह रिपोर्ट स्टेट विजिलेंस, स्वास्थ्य विभाग और KGMU को भेजी गई, जिसके बाद आखिरकार बर्खास्तगी का फैसला लिया गया।

डॉ. एके सचान की बर्खास्तगी ने मेडिकल यूनिवर्सिटी की कार्यप्रणाली और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह कार्रवाई देर से सही, लेकिन एक जरूरी संदेश है कि संस्थागत भ्रष्टाचार अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

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