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संविधान की आत्मा से छेड़छाड़ इमरजेंसी की देन, समाजवाद-धर्मनिरपेक्ष हटे तभी लौटेगा असली स्वरूप : राजा भैया

Raja Bhaiya

Raja Bhaiya Constitution Preamble: उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपने बेबाक तेवरों और स्वतंत्र रुख के लिए मशहूर कुंडा विधायक तथा जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के राष्ट्रीय अध्यक्ष रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने संविधान की प्रस्तावना को लेकर बड़ा बयान दिया है। उनका कहना है कि समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द संविधान की मूल आत्मा का हिस्सा नहीं थे, बल्कि इन्हें इमरजेंसी के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राजनीतिक कारणों से जोड़ा था। उन्होंने कहा कि जब तक ये शब्द संविधान से हटाए नहीं जाते, तब तक यह अपने वास्तविक स्वरूप में नहीं लौट सकता।

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Raja Bhaiya ने एक निजी पॉडकास्ट में बातचीत करते हुए कहा कि संविधान का स्वरूप वही होना चाहिए जैसा इसे संविधान सभा ने तैयार किया था। उनका आरोप था कि इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान प्रस्तावना में बदलाव किया और इस प्रक्रिया ने लोकतंत्र की जड़ों पर प्रहार किया। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या इंदिरा गांधी खुद को बाबा साहब अंबेडकर, सरदार पटेल और पंडित नेहरू से बड़ा विद्वान मानती थीं?

कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि समाजवादी विचारधारा और कांग्रेस में कभी मेल नहीं रहा। फिर भी इंदिरा गांधी ने समाजवाद शब्द जोड़कर राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश की। राजा भैया ने तंज कसते हुए कहा कि जिन्ना और इकबाल ने तो यह कहा था कि मुसलमान हिंदुओं के साथ नहीं रह सकते, लेकिन हिंदुओं ने कभी ऐसी बात नहीं की। बल्कि उन्होंने मुसलमानों को पाकिस्तान जाने से रोका और भाईचारे का संदेश दिया।

धर्मनिरपेक्षता के सवाल पर Raja Bhaiya ने कहा कि भारत आज धर्मनिरपेक्ष है तो सिर्फ इसलिए कि यहां बहुसंख्यक सनातनी समाज हमेशा से सहिष्णु रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत मूल रूप से सनातन धर्म पर आधारित है और यही इसकी आत्मा भी है। इसी संदर्भ में उन्होंने कहा कि वे भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के पक्षधर हैं क्योंकि यह इसकी असली पहचान है।

Raja Bhaiya ने यह भी कहा कि जिन देशों में संविधान है, वहां प्रस्तावना उसकी आत्मा होती है। भारत का संविधान डॉ. भीमराव अंबेडकर, सरदार पटेल, पंडित नेहरू, सरोजिनी नायडू और अन्य महान नेताओं की दूरदृष्टि से बना है। ऐसे में प्रस्तावना से छेड़छाड़ करना उन सभी महान विभूतियों के योगदान को नकारने जैसा है।

उन्होंने दोहराया कि जब तक समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष जैसे शब्द संविधान से नहीं हटाए जाते, तब तक इसे उसकी मूल भावना में नहीं माना जा सकता।

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