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उत्तर प्रदेश में अब तक इतने हजार हो चुके एनकाउंटर, जानिए इसके लिए क्या कहता है कानून

Police Encounter
Police Encounter

Police Encounter: एनकाउंटर का नाम सूनते ही अपराधियों के अंदर खौफ आ जाता है। एनकाउंटर एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल पुलिस और अपराधियों के बीच टकराव के लिए किया जाता है। एनकाउंटर हमेशा से ही भारत में अहम बहस का हिस्सा रहा है। लेकिन कुछ परिस्थितियों में ऐसी कार्रवाई जायज भी होती है। जैसे आत्मरक्षा के लिए। उत्तर प्रदेश की बात करें तो जब से योगी सरकार आई है, तब से अपराध के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जा रही है और पुलिस ताबड़तोड़ एनकाउंटर कर रही है। योगी सरकार ने अपने कार्यकाल के आठ साल पूरे कर लिए हैं और इस दौरान 8000 से ज़्यादा एनकाउंटर हो चुके हैं। लेकिन इस बारे में कानून क्या कहता है।

यूपी से सफाया हुआ अपराधी 

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उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के कार्यकाल में एनकाउंटर को लेकर अपराधियों के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जाती है। 20 मार्च 2017 को जब योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य की कमान संभाली थी, तब उन्होंने घोषणा की थी कि राज्य में कानून का राज होगा और अपराधियों का सफाया किया जाएगा। इसके बाद यूपी पुलिस को खुली छूट मिल गई और नई नीति शुरू की गई कि अपराधी या तो सरेंडर कर दे या फिर उसे मार दिया जाएगा। आइए जानते हैं एनकाउंटर को लेकर देश में क्या नियम हैं।

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न्यायेतर हत्या अनुच्छेद 21 का करती है उल्लंघन

सीआरपीसी की धारा 46 के अनुसार, यदि कोई अपराधी गिरफ्तारी से बचने के लिए वहां से भागने की कोशिश करता है और इस दौरान अगर वह पुलिस पर हमला करता है, तो ऐसी स्थिति में पुलिस अपराधी के खिलाफ जवाबी कार्रवाई कर सकती है। भारतीय संविधान में न्यायेतर हत्या को एनकाउंटर के नाम से जाना जाता है, जब अधिकारी के पद पर बैठा कोई व्यक्ति बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के किसी की हत्या कर देता है। न्यायेतर हत्या भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करती है। इस अनुच्छेद के अनुसार, किसी भी व्यक्ति की हत्या कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार की जा सकती है।

एनकाउंटर को लेकर क्या है दिशा-निर्देश

भारत में एनकाउंटर को लेकर कोई विशेष कानून नहीं है, लेकिन समय-समय पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और सुप्रीम कोर्ट ने विशेष दिशा-निर्देश दिए हैं।

  • जब भी पुलिस को किसी गंभीर अपराध के घटित होने से संबंधित आपराधिक गतिविधि की सूचना मिलती है, तो उसे लिखित या इलेक्ट्रॉनिक रूप में दर्ज किया जाता है।
  • यदि पुलिस द्वारा किसी सूचना या खुफिया सूचना के आधार पर किसी व्यक्ति की मुठभेड़ में मृत्यु हो जाती है, तो दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 157 के तहत एफआईआर दर्ज कर उसे न्यायालय को भेजना आवश्यक है।
  • पुलिस मुठभेड़ में मृत्यु होने पर दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 176 के तहत जांच की जाती है। जांच रिपोर्ट दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 190 के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट को सौंपी जाती है।
  • यदि अपराधी मुठभेड़ में केवल घायल होता है, तो उसका बयान चिकित्सा अधिकारी या मजिस्ट्रेट द्वारा फिटनेस प्रमाण पत्र के साथ दर्ज किया जाता है।
  • मुठभेड़ की स्थिति में पुलिस को तुरंत एफआईआर दर्ज कर पंचनामा बनाकर बिना किसी देरी के न्यायालय को भेजना होता है। यदि अपराधी मुठभेड़ में मर जाता है, तो पुलिस को उसके करीबी रिश्तेदारों को जल्द से जल्द सूचित करना होता है।
  • यदि पुलिस इन नियमों का पालन नहीं करती है, तो मृतक का परिवार घटना स्थल पर सत्र न्यायाधीश के पास शिकायत दर्ज करा सकता है।

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