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लोकतंत्र का मकसद सेवा या फिर शासन करना? यहां समझिए पूरा मामला

Kunal Kamra Controversy
Kunal Kamra Controversy
Kunal Kamra Controversy: क्या दुनिया में राजतंत्र से ज्यादा खतरा लोकतंत्र से हो गया है? यह सवाल हर किसी के मन में रहता है, देश में हर कोई पूर्ण रुप से स्वतंत्र तो है लेकिन फिर भी अपने विचारों को खुले मंच पर रखने से कतराता है। अगर कोई किसी संस्था से जुड़ा हुआ हो या फिर किसी से नहीं वह गलत को गलत कहने से डरता है। पैंसो की लालच की वजह से जान की डर से क्योंकि अनुच्छेद 19.1 में हस्तक्षेप किए बिना सभी के विचार रखने के अधिकार को संरक्षित तो किया गया है, लेकिन यह सिर्फ कागजी रुप तक ही सीमित रह गया है। आज लोग सरकार से में इसिलए आते हैं, क्योंकि उनका मकसद सेवा नहीं बल्कि शासन करना हो गया है।

कुणाल ने शिंदे पर किया था कटाक्ष

यह बात हम इसलिए कह रहे हैं कि कुछ दिनों पहले 36 साल के कॉमेडियन कुणाल कामरा ने अपने एक शो में हास्य रुप से फिल्म के गाने की पैरोडी बनाकर शिंदे के राजनीतिक करियर पर कटाक्ष किया था। जिसके बाद महाराष्ट्र में एक बड़ा राजनीतिक तूफ़ान मच गया। फिर शिंदे गुट के समर्थकों ने रिकॉर्डिंग की जगह पर जाकर तोड़ फोड़ मचा दी। इस तोड़फोड़ के अलावा इसकी प्रक्रिया कानुनी तौर पर भी हो सकती है। जब सरकार खुद कानून के नहीं मान रही तो आम जनता कैसे इसका पालन करेंगे।

कुणाल कामरा का आया बड़ा बयान

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इस मामले के बाद कुणाल कामरा ने अपने एक्स पर लिखा कि, “एंटरटेनमेंट वेन्यू महज एक प्लेटफ़ॉर्म है। यह हर किस्म के शो का मंच है। हैबिटेट (या कोई भी जगह), मेरी कॉमेडी के लिए ज़िम्मेदार नहीं है, और जो भी मैं कहता या करता हूं, उस पर उसका कोई अधिकार या नियंत्रण नहीं है। ना ही किसी और पार्टी का कोई अधिकार है। एक कॉमेडियन के कहे शब्दों के लिए किसी जगह को नुकसान पहुंचाना, वैसी ही नासमझी है जैसे अगर आपको चिकन नहीं परोसा जाता तो आप टमाटर के ट्रक को पलट दें।”

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