राहुल शर्मा
दिल्ली। लॉरेंस सिंडिकेट बड़े ही हाइटैक तरीके से गिरोह की फाइनेंशियल स्थिति को मजबूत कर रहा है। इस गेंग का ये सिद्धांत है कि ये आम तौर पर पॉलीशियन को टारगेट नहीं करते।
गैंग के बिचौलिये सिंडिकेट की वित्तीय स्थिति और भुगतान क्षमता के आधार पर सट्टेबाजों, जुआरियों, रियल एस्टेट डीलरों, बिल्डरों, जमीन हड़पने वालों और ज्वैलर्स जैसे अमीर लोगों को निशाना बनवाते हैं।
एक बार टारगेट चुने जाने के बाद गिरोह उन्हें डराने और धमकाने के लिए विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल करके फोन कॉल, चिट्ठी या यात्राओं के जरिए मांग करता है। फिर उगाही की गई रकम को हवाला चैनलों के जरिए विदेश ट्रांसफर करा देता है।
इंटरनेट के जरिये टच में रहते हैं
गिरोह ने अपनी रणनीति के तहत हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली-एनसीआर के खासकर ग्रामीण इलाकों से 15 से 20 साल की उम्र के किशोरों को भर्ती कर रखा है। इन युवकों को गिरोह का सदस्य बनने का प्रलोभन दिया गया और इंटरनेट-आधारित सेवाओं के माध्यम से उनसे संपर्क किया गया।
आज भी गैंग का ज्यादातर संपर्क एक-सरे से इनटरेंट के जरिये अलग अलग सोशल साईटों के जरिये होता है।
नये मेंबर से कराते हैं ये काम
नए भर्ती किए गए सदस्यों को टारगेट के घर या कारोबार की जगह पर निगरानी करने का काम सौंपा जाता है। निगरानी पूरी करने के बाद उन्हें लोगों से जबरन वसूली से पहले डराने के लिए खिड़कियों, दरवाजों या छत पर गोलीबारी जैसी हरकतें करने का निर्देश दिया जाता है। नए कार्यभार दिए जाने से पहले पहचाने जाने से बचने के लिए रंगरूटों को जगह बदलते रहने के लिए कहा जाता है।