Thackeray brothers: महाराष्ट्र की राजनीति में फिर एक दिलचस्प सवाल सामने आया है—क्या ठाकरे भाई एक साथ आएंगे? राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच वर्षों से चल रहे मतभेद अब समाप्त होते दिख रहे हैं। पुराने झगड़ों को दरकिनार कर दोनों भाइयों का एकजुट होना महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है। क्या यह सियासी गठबंधन सच में होगा?
राज ठाकरे का इशारा और उद्धव ठाकरे की सख्त शर्तें
राज ठाकरे ने हाल ही में एक पॉडकास्ट में उद्धव ठाकरे से पुरानी कड़वाहट भुलाकर महाराष्ट्र के लिए एकजुट होने की इच्छा जताई। उनका कहना था कि “हमारे विवाद छोटे हैं, जो मराठी अस्मिता के मुद्दे के सामने बहुत मामूली हैं। साथ आना कोई मुश्किल काम नहीं है, बस इच्छाशक्ति की जरूरत है।” उनका यह बयान सियासी हलकों में हलचल पैदा कर गया।
लेकिन उद्धव ठाकरे ने इस प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार नहीं किया। उन्होंने अपनी शर्तें सामने रखी। उद्धव ने कहा, “जो महाराष्ट्र के खिलाफ काम कर रहा है, उसे मैं न घर बुलाऊंगा, न उनके साथ मंच साझा करूंगा। पहले यह तय कर लें कि आप किसके साथ हैं—भाजपा या महाराष्ट्र?” उद्धव ने स्पष्ट किया कि वे मराठी अस्मिता के खिलाफ किसी भी कदम को मंजूरी नहीं देंगे।
क्या ठाकरे भाइयों का एकजुट होना महाराष्ट्र की राजनीति में बदलाव लाएगा?
राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस ने हाल के विधानसभा चुनावों में बहुत खराब प्रदर्शन किया। 2024 के चुनावों में पार्टी को कोई सीट नहीं मिली, लेकिन उसने मुंबई में एकनाथ शिंदे की शिवसेना को जबर्दस्त नुकसान पहुंचाया। एमएनएस ने मुंबई की 128 सीटों में से कई सीटों पर शिंदे गुट के वोट काटे, जिससे उद्धव ठाकरे की पार्टी को फायदा हुआ।
विशेष रूप से, मुंबई में जिन 10 सीटों पर उद्धव की शिवसेना ने जीत हासिल की, उनमें से 8 सीटों पर एमएनएस ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इन सीटों पर एमएनएस ने शिंदे गुट के वोट काटे, जिससे उद्धव को एक बड़ी मदद मिली। इसका मतलब यह है कि अगर ठाकरे बंधु एकजुट होते हैं, तो उनके गठबंधन से महाराष्ट्र की राजनीति में एक नई ताकत बन सकती है।
2006 से शुरू हुआ फासला, क्या 2025 में होगा मेल-मिलाप?
राज ठाकरे ने 2006 में शिवसेना से अलग होकर एमएनएस का गठन किया था। इसके बाद दोनों भाइयों के बीच मतभेदों की लकीर खींच गई। लेकिन अब जब राज ने अपने बयान में यह कहा कि महाराष्ट्र के हित के लिए साथ आना जरूरी है, तो सवाल उठता है कि क्या उद्धव ठाकरे इस प्रस्ताव को स्वीकार करेंगे?
राज की पार्टी का असर भले ही घटा हो, लेकिन अगर दोनों ठाकरे एकजुट होते हैं, तो यह महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ी शक्ति बन सकता है। यदि ये दोनों एक साथ आते हैं, तो महाराष्ट्र में एक नए राजनीतिक मोर्चे का जन्म हो सकता है।
राजनीतिक परिप्रेक्ष्य और भावनात्मक पहलू
Thackeray brothers की सियासी कहानी सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि भावनाओं और परिवार की धरोहर से भी जुड़ी हुई है। बाल ठाकरे की विरासत, मराठी अस्मिता और महाराष्ट्र का भविष्य—यह सब कुछ इस मेल-मिलाप पर निर्भर करेगा।
क्या ये दोनों Thackeray brothers के बीच पुरानी दरारें खत्म हो पाएंगी? क्या महाराष्ट्र के हित में वे फिर से एक हो सकते हैं? यह सवाल अब महाराष्ट्र की सियासत में अहम हो गया है। वक्त बताएगा कि यह सियासी मिलन सिर्फ एक स्वप्न है, या महाराष्ट्र की राजनीति में नई लहर का आगाज।