Ayodhya Medical College: अयोध्या मेडिकल कॉलेज में संविदा पर कार्यरत प्रभुनाथ मिश्रा की संदिग्ध मौत का मामला अब नया मोड़ ले चुका है। हाल ही में आई CDFD हैदराबाद की DNA जांच में सनसनीखेज खुलासा हुआ है कि मृतक का बिसरा सैंपल बदल दिया गया था। इस खुलासे के बाद न केवल अयोध्या मेडिकल कॉलेज बल्कि लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) की मोर्चरी और फॉरेंसिक जांच प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं।
मामला 2023 का है, जब प्रभुनाथ मिश्रा ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी। परिवार का आरोप है कि प्रभुनाथ को काम के दौरान मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता था और उन पर SC/ST एक्ट में फंसाने की धमकी भी दी जा रही थी। इसी दबाव में उन्होंने अपनी जान दे दी।
मौत के बाद बिसरा जांच के लिए KGMU भेजा गया, लेकिन 27 मार्च 2025 को जब CDFD की DNA रिपोर्ट सामने आई, तो पता चला कि बिसरा प्रभुनाथ का था ही नहीं। परिजनों का आरोप है कि यह सब Ayodhya Medical College के कुछ जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा साजिशन किया गया, ताकि दोषियों को बचाया जा सके। उन्होंने तत्कालीन प्रिंसिपल डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार समेत कई लोगों पर गंभीर आरोप लगाए हैं।
हालांकि FIR तो दर्ज हुई, लेकिन सबूतों की कमी का हवाला देकर कोर्ट ने आरोपियों की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी। एक साल बीत जाने के बाद भी अयोध्या पुलिस ने इस मामले में चार्जशीट दाखिल नहीं की है, जिससे परिवार बेहद निराश है।
बिसरा रिपोर्ट और मेडिको लीगल रिपोर्ट में विरोधाभास भी सामने आए हैं। एक ओर स्टेट रिपोर्ट में जहर देने की संभावना थी, तो दूसरी ओर बिसरा सैंपल की जांच से आत्महत्या की पुष्टि नहीं हुई। परिजनों का कहना है कि जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति का सैंपल रखकर साक्ष्य मिटाने का प्रयास किया गया।
डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने इस मामले की जांच के निर्देश भी दिए थे, लेकिन वह भी अब ठंडे बस्ते में जा चुकी है। परिवार का कहना है कि वे पिछले एक साल से लगातार न्याय के लिए गुहार लगा रहे हैं, लेकिन अब तक केवल आश्वासन ही मिले हैं।
यह मामला सिर्फ एक आत्महत्या नहीं, बल्कि चिकित्सा व्यवस्था में व्याप्त गहरी साजिश और भ्रष्टाचार का भी प्रतीक बन गया है।