Gorakhpur school vs coaching: गोरखपुर में अब शिक्षा व्यवस्था को लेकर बड़ा संघर्ष सामने आया है, जहां स्कूल संचालकों और कोचिंग संस्थानों के बीच टकराव साफ दिखाई देने लगा है। ‘नॉन स्कूलिंग’ की प्रवृत्ति को लेकर गोरखपुर स्कूल एसोसिएशन ने मोर्चा खोलते हुए कोचिंग सेंटरों पर छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ करने का आरोप लगाया है। एसोसिएशन का मानना है कि कोचिंग संस्थान बच्चों को स्कूल से अलग कर केवल प्रतियोगी परीक्षाओं की दौड़ में झोंक रहे हैं, जिससे उनका मानसिक और सामाजिक विकास रुक रहा है।
एसोसिएशन Gorakhpur के अध्यक्ष प्रो. डॉ. संजयन त्रिपाठी का कहना है कि स्कूलों में पढ़ाई सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं होती, बल्कि छात्रों के व्यक्तित्व विकास, अनुशासन, खेल और मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा जाता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में कोचिंग संस्थानों का चलन इतना बढ़ गया है कि बच्चे स्कूल छोड़कर सीधे कोचिंग क्लासों की ओर भाग रहे हैं। यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है जिसे रोकना जरूरी है।
महासचिव माधवेंद्र कुमार पांडेय ने स्पष्ट किया कि गोरखपुर को कोटा जैसा कोचिंग हब नहीं बनने दिया जाएगा। उनका कहना है कि नॉन स्कूलिंग बच्चों को भ्रम में डाल रही है और कोचिंग माफिया विज्ञापनों के जरिए झूठे सपने बेच रहा है। मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं के आंकड़े भी इस पर चिंता बढ़ाते हैं। 2024 में नीट में करीब 23 लाख छात्रों ने परीक्षा दी जबकि सीटें मात्र 1.15 लाख थीं। इसी तरह, जेईई में भी लाखों छात्र कुछ हजार सीटों के लिए होड़ में शामिल हुए। इसका सीधा फायदा कोचिंग सेंटरों को हुआ, जबकि बड़ी संख्या में छात्र निराशा और असफलता का शिकार बने।
Gorakhpur एसोसिएशन अब इस मुद्दे को अदालत तक ले जाने की तैयारी कर रहा है। पैरेंट्स एसोसिएशन के सदस्य भी इस मुहिम में साथ आ चुके हैं। अभिभावकों का मानना है कि जो छात्र स्कूल में नियमित पढ़ाई करता है, उसे कोचिंग की जरूरत नहीं पड़ती। वहीं, मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. आशीष शाही चेतावनी देते हैं कि पढ़ाई के इस असंतुलन का असर बच्चों की मानसिकता और भविष्य दोनों पर पड़ेगा।
Gorakhpur में अब यह बहस केवल कोचिंग बनाम स्कूल की नहीं रह गई, बल्कि यह आने वाली पीढ़ी के दिशा और दशा का सवाल बन चुकी है।