UP electricity privatization: उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और दक्षिणांचल क्षेत्र के 42 जिलों में बिजली व्यवस्था के निजीकरण को लेकर सरकार की मंशा अब सवालों के घेरे में है। उपभोक्ता परिषद ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेजकर बिजली कंपनियों को निजी हाथों में सौंपने की प्रक्रिया की सीबीआई जांच की मांग की है। परिषद का कहना है कि हजारों करोड़ रुपये खर्च करने के बाद अब इन कंपनियों को बेचने की योजना सरकारी धन के दुरुपयोग का मामला बनती है। साथ ही परिषद ने इस पूरे मामले को एक सुनियोजित घोटाला बताते हुए साक्ष्य भी पत्र के साथ भेजे हैं।
43,454 करोड़ के निवेश के बाद निजीकरण पर सवाल
UP विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने केंद्र सरकार की आरडीएसएस योजना का हवाला देते हुए बताया कि इस योजना के तहत पूरे देश में 3.03 लाख करोड़ रुपये बिजली व्यवस्था के उन्नयन पर खर्च किए जा रहे हैं, जिसमें 15% यानी करीब 43,454 करोड़ रुपये अकेले उत्तर प्रदेश में खर्च हो रहे हैं। वर्मा का कहना है कि जब यह निवेश बिजली कंपनियों को आत्मनिर्भर और कुशल बनाने के लिए किया गया, तो अब इन्हें निजी कंपनियों को सौंपने की जरूरत क्यों पड़ी?
निजी हाथों में मालिकाना हक सौंपने की तैयारी
UP परिषद के अनुसार UP पावर कॉरपोरेशन और राज्य के ऊर्जा विभाग के कुछ नौकरशाहों ने बिजली कंपनियों के 51% हिस्से को निजी घरानों को बेचने की योजना बनाई है। इससे पूरा नियंत्रण निजी हाथों में चला जाएगा। परिषद का आरोप है कि यह सब एक पूर्व नियोजित रणनीति के तहत किया जा रहा है, ताकि सरकारी निवेश के बावजूद बिजली कंपनियों का मालिकाना हक निजी पूंजीपतियों को सौंपा जा सके। इसीलिए मामले की जांच केंद्रीय एजेंसी सीबीआई से कराना जरूरी है।
आंदोलन जारी, कर्मचारियों ने बनाया आपूर्ति का रिकॉर्ड
निजीकरण के विरोध में UP विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति पिछले 195 दिनों से आंदोलनरत है। इसके बावजूद कर्मचारियों ने बिजली आपूर्ति में कोई व्यवधान नहीं आने दिया। हाल ही में 31104 मेगावाट की रिकॉर्ड आपूर्ति कर कर्मचारियों ने साबित किया कि वे उपभोक्ताओं की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। समिति ने स्पष्ट किया है कि गर्मी में बढ़ती मांग के बीच आंदोलन का असर जनता पर नहीं पड़ने दिया जाएगा।
पारदर्शिता की मांग के बीच बड़ा राजनीतिक मुद्दा
UP बिजली निजीकरण को लेकर उपभोक्ता परिषद, कर्मचारियों और आम जनता की चिंता लगातार बढ़ रही है। जब सरकार ने पहले ही भारी निवेश कर सिस्टम को मजबूत किया है, तो अब निजीकरण के पीछे की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं। यह मामला राजनीतिक और सार्वजनिक स्तर पर बड़ा मुद्दा बन चुका है, जिससे निपटने के लिए सरकार को अब पारदर्शिता के साथ जवाब देना ही होगा।