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Pooja Pal Controversy: सपा और बीजेपी की सियासत में ओबीसी वोट बैंक की नई जंग

Pooja Pal

Pooja Pal Controversy: उत्तर प्रदेश की राजनीति में सपा विधायक पूजा पाल के निष्कासन ने नई हलचल पैदा कर दी है। पूजा पाल ने सपा के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले पर सवाल उठाते हुए खुद को जान के खतरे में बताया और पार्टी के फैसलों की आलोचना की। उन्होंने कहा कि उनके पति राजू पाल की हत्या के समय राज्य में सपा की सरकार थी और उनके खिलाफ सपा पोषित माफिया खतरा बन सकते हैं।

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Pooja Pal के बागी तेवर ने बीजेपी के लिए अवसर पैदा किया। बीजेपी ने उन्हें मोहरा बनाकर ओबीसी वोट बैंक, खासकर पाल और बघेल समाज, को साधने और सपा के पीडीए फॉर्मूले को चुनौती देने की रणनीति अपनाई। डिप्टी सीएम बृजेश पाठक समेत बीजेपी के अन्य नेता भी सपा पर हमला बोलते हुए इसे महिला-सुरक्षा और न्याय का मुद्दा बना रहे हैं।

जवाब में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने खुद मोर्चा संभाला और अपने प्रदेश अध्यक्ष श्यामलाल पाल को फ्रंटफुट पर उतारा। अखिलेश ने कहा कि बीजेपी पूजा पाल को दुष्प्रचार के लिए इस्तेमाल कर रही है। उन्होंने केंद्र सरकार से जांच की मांग की और कहा कि यह मामला गंभीर है कि किसी विधायक को जान का खतरा दूसरे दल के नेता से हो। अखिलेश ने स्पष्ट किया कि सपा पूरी गंभीरता के साथ इस मामले में खड़ी है और बीजेपी की साजिशों को बेनकाब करेगी।

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राजू पाल की हत्या और Pooja Pal का राजनीतिक सफर भी इस विवाद में अहम भूमिका निभा रहा है। बसपा से सपा में आने और 2024 में बीजेपी को वोट देने के बाद पूजा पाल अब सियासी मोर्चे पर महत्वपूर्ण मोहरा बन गई हैं। बीजेपी ने इसे अपने लिए ‘ब्रांड एंबेसडर’ के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। इस तरह पूजा पाल विवाद अब केवल एक व्यक्तिगत मामले तक सीमित नहीं रह गया, बल्कि यह ओबीसी वोट बैंक और सियासी गणित की लड़ाई बन गया है।

उत्तर प्रदेश में ओबीसी वोट बैंक लगभग 54% है, जिसमें यादव, कुर्मी-कुशवाहा, सैंथवार, जाट, लोध, मल्लाह, पाल-गड़रिया और अन्य जातियां शामिल हैं। खासकर पाल समाज का प्रभाव बृज और रुहेलखंड के जिलों में महत्वपूर्ण है। बीजेपी और सपा दोनों ही इस वोट बैंक को साधने की कोशिश में हैं। इस विवाद ने स्पष्ट कर दिया कि यूपी की राजनीति में ओबीसी वोट बैंक अब अगले चुनाव की दिशा तय करने वाला अहम कारक होगा।

 

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