Kanpur:दिन में तापमान बढऩे और रात में गिरने से दिल के मरीजों की संख्या में इजाफा होने लगा है। अगर बात करें बीपी और हाइपरटेंशन पेशेंट्स की तो इनका बीपी अनकंट्रोल हो रहा है। ऐसे में उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। आलम यह है कि Kanpur के हृदय रोग संस्थान यानि कॉडियोलॉजी में पेशेंट्स की संख्या दो गुनी हो गई है। डॉक्टर्स ने एहतियात बरतने और जरूरत देखकर दवा की डोज में बदलाव नहीं करने पर पीड़ित को ब्रेन स्ट्रोक और हार्ट अटैक के खतरे के प्रति अगाह किया है।
घनराएं नही अलर्ट रहें
हार्ट स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स के मुताबिक बदलते Kanpur मौसम में सिर्फ अलर्ट रहने की जरूरत होती है न कि घबराने की, अगर आप अलर्ट रहेंगे तो आने वाली बड़ी मुश्किलों से बचा जा सकता है। डॉक्टर्स के मुताबिक क्योंकि मौसम में सर्दी बढऩे पर बीपी का अनकंट्रोल होना सामान्य समस्या है। ठंड में बीपी अचानक घटने-बढऩे पर रक्त धमनियों के सिकुडऩे से शरीर में खून की आपूर्ति करने के लिए हार्ट को अतिरिक्त दबाव का सामना करना पड़ता है। जिसको रूटीन चेकअप कर डॉक्टर्स के निर्देेशों को फॉलो कर हार्ट अटैक से बचा जा सकता है।
गर्मी वाली बीपी की दवा सर्दी में खाने से बढ़ सकतीं दिल की मुश्किलें
कार्डियोलॉजी हॉस्पिटल के एक्सपर्ट का कहना है कि जिन लोगों को ब्लड प्रेशर की समस्या है और वह अभी भी गर्मी के मौसम में निर्धारित की गई दवा की खुराक का सेवन कर रहे हैं, उन्हें अधिक अलर्ट रहने की जरूरत है। गर्मी वाली बीपी की दवा सर्दी में खाने से दिल की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। स्ट्रोक व हार्ट अटैक की आशंका कई गुना बढ़ जाती है। क्योंकि गर्मी में बॉडी का ब्लड पतला होता है और ठंडे में उसका सीधा विपरीत होता है।
फैमिली डॉक्टर्स से चेक करा लें दवा का डोज
कार्डियोलॉजी हॉस्पिटल के प्रो, नीरज कुमार ने बताया कि बीपी व हार्ट के पुराने पेशेंट जोकि गर्मी में डॉक्टर की लिखी हुई दवा की डोज में बदलाव नहीं किया है, वो अपने डॉक्टर से संपर्क कर दवा में बदलाव करा लें। इन लापरवाही की वजह से ही बड़ी संख्या में कार्डियोलॉजी हॉस्पिटल में पेशेंट पहुंच रहे हैं। ऐहतियात के लिए तले-भुने भोजन और अधिक नमक युक्त खानपान से बचना होगा। नियमित व्यायाम करना चाहिए। पसीना नहीं निकलने के अलावा भी कई कारण हैं जो बीपी को अनियंत्रित कर देते हैं।
बीपी कम होने से भी बढ़ती समस्या
कार्डियोलॉजी हॉस्पिटल के सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ, अवधेश कुमार शर्मा ने बताया कि सिस्टोलिक यानि ऊपर का बीपी 90 के नीचे आने से शरीर के दूसरे अंग फेल होने लगते हैं। सिस्टोलिक बीपी 100 से कम नहीं होना चाहिए। डायस्टोलिक यानी नीचे का बीपी 80 से कम होने पर दिक्कत होती है। इससे नसों में खून नहीं पहुंचता है। ब्लड का प्रेशर कम होने से नसें सिकुडऩे लगती हैं।