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Wednesday, October 15, 2025
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    बड़ी खुशखबरी: जीबी पंत अस्पताल में अब मुफ्त वाल्व लगवाएं हार्ट के मरीज

    नई दिल्ली: गोविंद बल्लभ पंत (जीबी पंत) अस्पताल ने एक नई तकनीक से हार्ट रोगियों में मुफ्त वाल्व लगाना शुरू किया है। यह गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए किसी बड़ी खुशखबरी से कम नहीं है, क्योंकि अभी तक सरकारी और प्राइवेट दोनों ही अस्पतालों में वाल्व लगवाने का खर्चा हजारों-लाखों रुपये तक है। इसलिए जीबी पंत द्वारा मुफ्त वाल्व लगाने की शुरूआत से इन मरीजों को अपने इलाज के लिए उम्मीद की एक नई रोशनी मिली है। वाल्व लगवाने का खर्चा सरकारी अस्पताल में 40 से लेकर 80 हजार रुपये तक आता था। जबकि निजी अस्पताल में यह कीमत 80 हजार से लेकर पांच लाख रुपये तक होती थी। इस नई तकनीक के माध्यम से जीबी पंत में वाल्व बदलने की शुरूआत कार्डियोथोरेसिक वैस्कुलर सर्जरी विभाग के डा. सय्यद एहतेशाम नकवी ने की है। डा. नकवी ने बताया कि जिस तकनीक से वाल्व बनाकर मरीजों में लगाए जा रहे हैं वह जापान की तकनीक है। जीबी पंत में यह सुविधा पूरी तरह मुफ्त है।

    क्या है ओजाकी तकनीक
    डा. एहतेशाम ने बताया कि इसे जापान के प्रो शिगेयुकी ओज़ाकी ने विकसित किया है। इसलिए उनके नाम पर ही इस तकनीक का नाम रखा गया है। इसमें मरीज के हार्ट के ऊपर की पैरिकार्डियम झिल्ली (टिश्यू) से ही वाल्व बनाया जाता है और इसे मरीज के खराब हुए वाल्व को निकालकर उसकी जगह लगा दिया जाता है।

    ये हैं बड़े फायदे
    मरीज के शरीर के ही टिश्यू से बनाकर लगाए जाने के कारण ये वाल्व मुफ्त हैं। मरीज को इन्हें बाहर से खरीदने की जरूरत नहीं है। इस तरह के वाल्व को लगाने से मरीज को जिंदगी भर खून पतला करने वाली दवाई नहीं खानी होती है। ये मार्केट में उपलब्ध वाल्व के मुकाबले अधिक टिकाऊ होते हैं। इसलिए जल्दी वाल्व बदलने की जरूरत नहीं पड़ती है।

    अभी तक बाजार में उपलब्ध थे दो तरह के वाल्व

    डा. एहतेशाम ने बताया कि इस समय बाजार में दो तरह के वाल्व उपलब्ध हैं। एक मैकेनिकल वाल्व और दूसरे वायो प्रोस्थेटिक वाल्व। मैकेनिकल वाल्व मैटल के बने होते हैं इसलिए इन पर खून का थक्का जमने का खतरा रहता है। इसलिए जिंदगी भर मरीज को खून पतला करने की दवाई खानी पड़ती है। दूसरे वायो प्रोस्थेटिक वाल्व जो सुअर या गाय के टिश्यू से बनाए जाते हैं।। इनको लगाने से खून पतला करने की दवाई तो नहीं खानी पड़ती लेकिन ये अधिक टिकाऊ नहीं होते हैं। 10 साल में ही खराब हो जाते हैं इससे दोबारा आपरेशन की नौबत आ जाती है। इसलिए ओजाकी तकनीक से बनाए गए वाल्व काफी कारगर साबित हो रहे हैं।

    चंडीगढ़ पीजीआइ से लिया नई तकनीक का प्रशिक्षण
    डा. नकवी ने बताया कि जीबी पंत से पहले यह तकनीक चंडीगढ़ पीजीआइ में अपनाई जा रही थी। वहां के कार्डियोथोरेसिक वैस्कुलर थोरेसिक सर्जरी (सीटीवीएस) विभाग के अध्यक्ष प्रो. श्याम को हमने अपने यहां के जरूरतमंद मरीजों के बारे में बताया तो उन्होंने हमें इस तकनीक का प्रशिक्षण दिया। इसके बाद हमने इस तकनीक को जीबी पंत में अपनाया।

    अभी तक दो मरीजों में नई तकनीक से लगाए गए वाल्व

    डा. सय्यद एहेतेशाम ने बताया कि जीबी पंत में दो मरीजों में इस नई ओजाकी तकनीक से वाल्व बनाकर लगाए गए हैं। इन मरीजों को वाल्व लगाने में शामिल रहे प्रो. डा. युसुफ जमाल ने बताया कि दोनों मरीजों में काफी अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं। इनमें एक मरीज की सर्जरी चार महीने पहले और दूसरे की डेढ़ महीने पहले की गई है। सर्जरी के बाद दोनों मरीजों की ईकोकार्डियोग्राफी करके देखी गई दोनों के हार्ट बहुत आसानी से काम कर रहे हैं। इनमें एक 70 वर्षीय महिला भी शामिल हैं। इन दोनों मरीजों को वाल्व लगाने वाली टीम में कार्डिएक एनेस्थीसिया के विभागाध्यक्ष प्रो. विष्णु दत्त भी शामिल रहे। कार्डियोलाजी के विभागाध्यक्ष डा. एमए जिलानी ने बताया कि अगले छह महीने में सात और मरीजों में ओजाकी तकनीक से वाल्व लगाए जाएंगे।

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