क्या है ओजाकी तकनीक
डा. एहतेशाम ने बताया कि इसे जापान के प्रो शिगेयुकी ओज़ाकी ने विकसित किया है। इसलिए उनके नाम पर ही इस तकनीक का नाम रखा गया है। इसमें मरीज के हार्ट के ऊपर की पैरिकार्डियम झिल्ली (टिश्यू) से ही वाल्व बनाया जाता है और इसे मरीज के खराब हुए वाल्व को निकालकर उसकी जगह लगा दिया जाता है।
ये हैं बड़े फायदे
मरीज के शरीर के ही टिश्यू से बनाकर लगाए जाने के कारण ये वाल्व मुफ्त हैं। मरीज को इन्हें बाहर से खरीदने की जरूरत नहीं है। इस तरह के वाल्व को लगाने से मरीज को जिंदगी भर खून पतला करने वाली दवाई नहीं खानी होती है। ये मार्केट में उपलब्ध वाल्व के मुकाबले अधिक टिकाऊ होते हैं। इसलिए जल्दी वाल्व बदलने की जरूरत नहीं पड़ती है।
डा. एहतेशाम ने बताया कि इस समय बाजार में दो तरह के वाल्व उपलब्ध हैं। एक मैकेनिकल वाल्व और दूसरे वायो प्रोस्थेटिक वाल्व। मैकेनिकल वाल्व मैटल के बने होते हैं इसलिए इन पर खून का थक्का जमने का खतरा रहता है। इसलिए जिंदगी भर मरीज को खून पतला करने की दवाई खानी पड़ती है। दूसरे वायो प्रोस्थेटिक वाल्व जो सुअर या गाय के टिश्यू से बनाए जाते हैं।। इनको लगाने से खून पतला करने की दवाई तो नहीं खानी पड़ती लेकिन ये अधिक टिकाऊ नहीं होते हैं। 10 साल में ही खराब हो जाते हैं इससे दोबारा आपरेशन की नौबत आ जाती है। इसलिए ओजाकी तकनीक से बनाए गए वाल्व काफी कारगर साबित हो रहे हैं।
चंडीगढ़ पीजीआइ से लिया नई तकनीक का प्रशिक्षण
डा. नकवी ने बताया कि जीबी पंत से पहले यह तकनीक चंडीगढ़ पीजीआइ में अपनाई जा रही थी। वहां के कार्डियोथोरेसिक वैस्कुलर थोरेसिक सर्जरी (सीटीवीएस) विभाग के अध्यक्ष प्रो. श्याम को हमने अपने यहां के जरूरतमंद मरीजों के बारे में बताया तो उन्होंने हमें इस तकनीक का प्रशिक्षण दिया। इसके बाद हमने इस तकनीक को जीबी पंत में अपनाया।
अभी तक दो मरीजों में नई तकनीक से लगाए गए वाल्व