Makar Sankranti 2023: मकर संक्रांति का पर्व इस बार 15 जनवरी, 2023 को है। हिंदू पंचांग के अनुसार जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, तब उसे मकर संक्रांति कहा जाता है। हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का विशेष स्थान है। मकर संक्रांति पर गंगा स्नान, दान, पूजा और सूर्य की उपासना करना बहुत ही शुभ माना जाता है। देशभर में मकर संक्रांति के पर्व को लेकर कई धार्मिक मान्यताएं हैं. मकर संक्रांति को देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है।
मकर संक्रांति को उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में इस खिचड़ी के नाम से जाना जाता है। गुजरात और महाराष्ट्र में इस पर्व को उत्तरायण पर्व के रूप में मनाने की परंपरा है जबकि दक्षिण भारत में इस पर्व को पोंगल के रूप में मनाया जाता है। दरअसल हर साल 14 जनवरी को सूर्य अपनी धनु राशि की यात्रा को रोककर अपने पुत्र शनि की राशि मकर में प्रवेश करता है। तब इसे मकर संक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति पर खिचड़ी, दही-चूड़ा और तिल के लड्डू और गजक खाने का विशेष महत्व है। उत्तर प्रदेश और बिहार में मकर संक्रांति पर दही और चूड़ी खाने की विशेष परंपरा है। आइए जानते हैं मकर संक्रांति पर दही-चूड़ा और खिचड़ी क्यों खाई जाती है।
मकर संक्रांति पर क्यों खाते हैं दही-चूड़ा और खिचड़ी?
मकर संक्रांति पर गंगा स्नान और सूर्य पूजा का विशेष महत्व है साथ ही इस दिन दही, चूड़ी, खिचड़ी और तिलकुट खाया जाता है. माना जाता है कि मकर संक्रांति पर इन चीजों को खाने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। दरअसल धान की कटाई इसी समय की जाती है और उससे चावल तैयार किया जाता है। फिर इस चावल को खिचड़ी के रूप में पकाने के बाद सबसे पहले भगवान सूर्यदेव को भोग लगाया जाता है। इसके अलावा मकर संक्रांति पर दही चूड़ा चढ़ाने से भी सूर्य देव प्रसन्न होते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन दही-चूड़ा और खिचड़ी खाने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है और जीवन में मान-सम्मान में वृद्धि होती है।
मकर संक्रांति पर धार्मिक महत्व के साथ दही-चूड़ा और खिचड़ी खाने का भी वैज्ञानिक महत्व है। स्वास्थ्य की दृष्टि से दही-चूड़ा और खिचड़ी हल्का भोजन है जो आसानी से पच जाता है। इन चीजों के सेवन से पाचन ठीक से काम करता है।
मकर संक्रांति का महत्व
सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर इस दिन को मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन गुड़ और तिल से बनी चीजों का सेवन और दान करने की परंपरा है। इस दिन स्नान, दान और पूजा करने से कई गुना पुण्य लाभ मिलता है। मकर संक्रांति पर खरमास समाप्त हो जाता है और शुभ कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं। इस दिन से सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर गमन करते हैं। उत्तरायण को देवताओं का दिन कहा जाता है। सूर्य के उत्तरायण होने पर ही भीष्म पितामह ने शरीर त्याग किया था।