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Sunday, August 24, 2025
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भाजपा की UP Panchayat elections रणनीति: मुस्लिम बहुल गांवों में उतारेंगी अपने विचारधारा से जुड़े मुस्लिम उम्मीदवार

UP Panchayat elections: उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों की तैयारियों ने जोर पकड़ लिया है और भारतीय जनता पार्टी ने इस बार एक अलग रणनीति बनाई है। पार्टी का फोकस उन गांवों पर है, जहां मुस्लिम आबादी अधिक है। अब भाजपा अपने अल्पसंख्यक मोर्चे की मदद से इन गांवों में ऐसे मुस्लिम उम्मीदवारों को पंचायत चुनाव में उतारने की योजना बना रही है, जो पार्टी की विचारधारा से मेल खाते हों। इसका उद्देश्य केवल चुनाव जीतना नहीं, बल्कि इन इलाकों में पार्टी का जमीनी आधार मजबूत करना है।

UP में एक लाख से अधिक गांव और 57 हजार से ज्यादा ग्राम पंचायतें हैं। इन पंचायतों में पार्टी सिंबल पर चुनाव नहीं लड़ती, लेकिन संगठन अपने समर्थकों और विचारधारा से जुड़े लोगों को चुनाव में आगे करता है। भाजपा को अब तक मुस्लिम बहुल गांवों में खास सफलता नहीं मिली है क्योंकि यहां हिंदू उम्मीदवारों के लिए जीत की संभावना कम रहती है। पार्टी को ऐसे गांवों में बूथ लेवल कार्यकर्ताओं की भी कमी का सामना करना पड़ता है।

भाजपा का मानना है कि करीब 3,000 पंचायतें और 7,000 गांव ऐसे हैं, जहां मुस्लिम आबादी 70% या उससे ज्यादा है। इन क्षेत्रों में प्रभाव बढ़ाने के लिए पार्टी ने अल्पसंख्यक मोर्चे को सक्रिय किया है। मोर्चे को यह जिम्मेदारी दी गई है कि ऐसे मुस्लिम कार्यकर्ताओं और नेताओं की पहचान करें जो भाजपा की सोच से सहमत हों और जो पंचायत स्तर से लेकर बड़े चुनावों में पार्टी के लिए उपयोगी साबित हो सकें।

UP भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष कुंवर बासित अली का कहना है कि अब समय आ गया है कि पार्टी मुस्लिम बहुल गांवों में भी अपना असर दिखाए। उनका मानना है कि अगर इन क्षेत्रों में पार्टी के समर्थक उम्मीदवार खड़े किए जाएं, तो आने वाले वर्षों में भाजपा को विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भी मजबूती मिलेगी।

यह पहल केवल पंचायत चुनाव तक सीमित नहीं है। भाजपा इसे एक दीर्घकालिक योजना के रूप में देख रही है, जिससे गांव स्तर पर नए नेता और कार्यकर्ता तैयार हो सकें। पंचायत चुनाव राजनीतिक नेतृत्व की पहली सीढ़ी होती है और भाजपा इसी सीढ़ी के जरिए मुस्लिम समुदाय में अपनी मौजूदगी को स्थायी बनाने की कोशिश कर रही है।

इस रणनीति से UP भाजपा को न सिर्फ स्थानीय चुनावों में बल मिलेगा, बल्कि दीर्घकालिक रूप से मुस्लिम समाज में वैचारिक स्वीकार्यता भी बढ़ेगी।

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