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Tuesday, June 24, 2025
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UP में स्कूल समायोजन पर विवाद: शिक्षामित्रों और ग्रामीण बच्चों के भविष्य पर मंडराया संकट

UP School adjustment: छुट्टियों के बीच UP में बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा कम छात्र संख्या वाले स्कूलों के समायोजन का आदेश जारी किया गया है, जिसने शिक्षकों, शिक्षामित्रों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों में भारी बेचैनी पैदा कर दी है। इस कदम को शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के नाम पर पेश किया जा रहा है, लेकिन इसका नकारात्मक पक्ष यह है कि यह ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों के लिए शिक्षा तक पहुंच को और अधिक कठिन बना देगा। विशेष रूप से, 50 से कम छात्रों वाले विद्यालयों को उनके निकटवर्ती विद्यालयों में ‘पेयर’ किया जाएगा। इस फैसले का सबसे बुरा असर उन गरीब ग्रामीण बच्चों पर पड़ेगा, जिन्हें अब शिक्षा प्राप्त करने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ेगी, साथ ही उन शिक्षामित्रों और रसोइयों पर भी जिनकी नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं।

शिक्षा अधिकारियों से मांगी गई सूची, गहराया संकट

UP बेसिक शिक्षा परिषद का कम छात्र संख्या वाले विद्यालयों के समायोजन का निर्णय अब विवादों में घिर गया है। सचिव बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा जारी इस आदेश के बाद जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों ने सभी विकासखंड शिक्षा अधिकारियों से ऐसे विद्यालयों की सूची मांगी है। हालांकि, इस ‘समायोजन’ को शिक्षा के स्तर में सुधार और बच्चों के लिए बेहतर शैक्षिक वातावरण बनाने का दावा किया जा रहा है, लेकिन शिक्षक संगठनों और ग्राम प्रधानों ने इसे छात्र हितों के विपरीत बताया है और इसके गंभीर नकारात्मक परिणामों की चेतावनी दी है।

शिक्षक संगठनों का विरोध और आंदोलन की घोषणा

UP जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ ने इस फैसले के खिलाफ आर-पार के आंदोलन की घोषणा कर दी है। संघ के जिला अध्यक्ष विद्या विलास पाठक ने कहा कि अनुच्छेद 21 के तहत 6 से 14 वर्ष के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है, और आरटीई अधिनियम की धारा 6 के अनुसार हर गांव के एक किलोमीटर के भीतर प्राथमिक विद्यालय अनिवार्य है। उन्होंने जोर देकर कहा कि इन विद्यालयों को छात्र संख्या के आधार पर समायोजित करना अव्यावहारिक है और यह बाल शिक्षा अधिकार का हनन है।

शिक्षामित्रों और रसोइयों के भविष्य पर संकट

पाठक ने आशंका जताई कि सरकार इस समायोजन के माध्यम से शिक्षक, शिक्षामित्र और रसोइयों के पदों को समाप्त करना चाहती है। उन्होंने बताया कि बहराइच जिले में ही इस फैसले से 123 विद्यालय प्रभावित होंगे, जिसका सीधा असर वहां कार्यरत शिक्षामित्रों, रसोइयों और शिक्षकों पर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि छोटे बच्चों के लिए दूर के स्कूलों में जाना मुश्किल होगा, और यह कदम उन लोगों के रोजगार को छीनने का प्रयास है जो पहले से ही कार्यरत हैं, जबकि सरकार नए रोजगार सृजित करने में विफल है।

ग्रामीण बच्चों पर सीधा प्रभाव

इस समायोजन का सबसे बड़ा खामियाजा गरीब ग्रामीण बच्चों को भुगतना पड़ेगा। जिन विद्यालयों को बंद या समायोजित किया जाएगा, वहां के बच्चों को अब शिक्षा प्राप्त करने के लिए मीलों पैदल चलना पड़ सकता है। यह न केवल उनकी पढ़ाई को बाधित करेगा, बल्कि उन्हें शिक्षा से वंचित भी कर सकता है, खासकर उन परिवारों के लिए जो अपने बच्चों को दूर भेजने में असमर्थ हैं।

अधिकारी इसे बता रहे छात्र हितैषी

वहीं, बहराइच के बीएसए आशीष कुमार सिंह ने इस कदम को ‘छात्र हितैषी’ बताया है। उनका कहना है कि इससे शिक्षा के स्तर में काफी सुधार होगा, अधिगम स्तर में वृद्धि होगी और बच्चों को प्रतिस्पर्धात्मक माहौल मिलेगा। बंद किए जाने वाले विद्यालयों के भवनों का उपयोग साइंस लैब, लाइब्रेरी आदि बनाने के लिए किया जाएगा। हालांकि, शिक्षक संगठनों का कहना है कि ये दावे जमीनी हकीकत से दूर हैं और यह कदम केवल शिक्षा व्यवस्था को कमजोर करने का काम करेगा। 27 जून को प्रदेश भर के बीआरसी पर बीईओ के माध्यम से मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन सौंपा जाएगा।

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