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Friday, November 28, 2025
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देवी-देवताओं को बदनाम करना बंद करो! मायावती का ‘आई लव’ विवाद पर विपक्ष को अल्टीमेटम: ‘यह सांप्रदायिक आग है!’

Lucknow rally: बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सुप्रीमो मायावती ने आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले, Lucknow में पार्टी संस्थापक कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर आयोजित एक विशाल महारैली में, विपक्ष पर जमकर हमला बोला। उन्होंने कानपुर से उठे ‘आई लव मोहम्मद’ बैनर विवाद को लेकर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी को भी देवी-देवताओं को बदनाम नहीं करना चाहिए और इस तरह की ‘आई लव’ की राजनीति नहीं करनी चाहिए, जो सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने का काम करती है।

मायावती ने Lucknow रैली में बसपा सरकार की ज़रूरत पर ज़ोर दिया और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के इस्तेमाल पर सवाल उठाए, जिन पर लगातार धांधली के आरोप लगते रहे हैं। उन्होंने कहा कि ईवीएम सिस्टम को खत्म किया जा सकता है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि स्वार्थी लोग दलितों के वोट बांटने की कोशिश कर रहे हैं, और समर्थकों को ऐसे तत्वों से सावधान रहने की सलाह दी।

मायावती ने किया बड़ा ऐलान, अकेले लड़ेगी BSP; सपा पर साधा निशाना

अपने Lucknow संबोधन में, मायावती ने समाजवादी पार्टी (सपा) को आड़े हाथों लिया। उन्होंने आपातकाल के दौरान संविधान को कुचलने, बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर को संसद तक नहीं पहुंचने देने और उन्हें भारत रत्न नहीं दिए जाने जैसे ऐतिहासिक मुद्दों को उठाया। उन्होंने सपा पर कांशीराम का अपमान करने का आरोप लगाया और कहा कि दलित समाज को इन बातों को लेकर जागरूक होना चाहिए। मायावती ने यह भी कहा कि दलितों को अभी भी पूरा आरक्षण नहीं मिला है और सपा को सत्ता में आने पर न तो ‘पीडीए’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) और न ही कांशीराम की याद आती है।

गौरतलब है कि ‘आई लव मोहम्मद’ बैनर विवाद बारावफात के दौरान मुस्लिम समुदाय द्वारा लगाए गए बैनरों से शुरू हुआ था, जिस पर कुछ हिंदू संगठनों ने आपत्ति जताई। इसके बाद सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने के आरोप में कई राज्यों में एफआईआर दर्ज की गईं। मुस्लिम समुदाय इसे पैगंबर के प्रति सम्मान जताने का धार्मिक अधिकार मानता है, जबकि पुलिस ने नियमों का उल्लंघन कर टेंट लगाने और अन्य समुदायों के धार्मिक पोस्टर फाड़ने के मामले भी दर्ज किए हैं। मायावती का यह बयान ऐसे समय आया है जब यह विवाद राजनीतिक रंग लेता जा रहा है, और इसे धार्मिक मुद्दों से दूरी बनाए रखने की वकालत के रूप में देखा जा रहा है।

 

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