Allahabad High-court News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 16 सितंबर 2025 को एक ऐतिहासिक आदेश जारी किया, जिसमें राज्य सरकार और पुलिस विभाग को निर्देश दिया गया कि FIR, गिरफ्तारी मेमो, चार्जशीट और अन्य सरकारी दस्तावेजों में अब जाति का उल्लेख नहीं होगा। जस्टिस विनोद दिवाकर ने इसे “संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ” और “राष्ट्र-विरोधी” बताते हुए कहा कि जाति आधारित पहचान समाज और कानून के लिए हानिकारक है। कोर्ट ने कहा कि आधुनिक पहचान तकनीक जैसे आधार, फिंगरप्रिंट और मोबाइल नंबर उपलब्ध होने के बावजूद जाति की जरूरत नहीं है।
मामला प्रवीण छेत्री के खिलाफ इटावा जिले में 29 अप्रैल 2023 को की गई शराब तस्करी से जुड़ा था। गिरफ्तारी और जब्ती मेमो में उनकी जाति “छेत्री” दर्ज थी। छेत्री ने FIR रद्द करने की याचिका दायर की, लेकिन कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया और जाति उल्लेख की प्रथा पर सख्ती की। कोर्ट ने कहा कि जाति आधारित रिकॉर्डिंग कानूनी भ्रांति पैदा करती है और पहचान की प्रोफाइलिंग को बढ़ावा देती है।
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उत्तर प्रदेश सरकार ने 21 सितंबर 2025 को मुख्य सचिव दीपक कुमार के माध्यम से Allahabad High-court आदेश पर तुरंत अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए 10-सूत्री दिशानिर्देश जारी किए। इनमें FIR और अन्य दस्तावेजों से जाति कॉलम हटाना, पुलिस वाहनों और थानों से जाति आधारित संकेत हटाना, सार्वजनिक स्थलों पर जाति के नाम/संकेत हटाना, सोशल मीडिया पर जाति महिमामंडन या घृणा फैलाने वाली सामग्री पर निगरानी और FIR दर्ज करना, तथा जागरूकता और प्रशिक्षण अभियान चलाना शामिल है। SC/ST एक्ट और अन्य कानूनी मामलों में जाति उल्लेख की छूट दी गई है।
सूत्र | विवरण | समय-सीमा / कार्रवाई |
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1 | FIR, गिरफ्तारी मेमो, चार्जशीट आदि से जाति कॉलम हटाना; पहचान के लिए आधार/मोबाइल नंबर जोड़ना। | तत्काल; SOP तैयार। |
2 | थानों और पुलिस वाहनों से जातीय संकेत हटाना। | 7–15 दिनों में। |
3 | सोशल मीडिया पर जाति आधारित घृणा सामग्री पर निगरानी। | दैनिक; साइबर सेल। |
4 | SC/ST एक्ट जैसे मामलों में कानूनी छूट। | SOP में स्पष्ट। |
विशेषज्ञों ने इसे पुलिस रिकॉर्ड्स में पूर्वाग्रह कम करने और सामाजिक एकता बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताया है। राजनीतिक प्रतिक्रियाओं में BJP ने इसे संवैधानिक मूल्यों की जीत कहा, जबकि विपक्ष ने स्वागत किया। ग्रामीण क्षेत्रों में साइनबोर्ड हटाने में प्रतिरोध और सोशल मीडिया निगरानी में संसाधन की चुनौती बनी हुई है। Allahabad High-court ने मुख्य सचिव को 3 महीने में अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
यह फैसला अनुच्छेद 14 और 15 के तहत समानता और भेदभाव निषेध की दिशा में ऐतिहासिक कदम है, जो जातिवाद-मुक्त भारत की नींव रखता है।