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Monday, October 20, 2025
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    Gyanvapi case: 19 अक्टूबर को मुस्लिम पक्ष पेश करेगा अंतिम दलीलें, कोर्ट कर सकता है फैसला सुरक्षित

    Gyanvapi case: वाराणसी के ऐतिहासिक ज्ञानवापी मामले में बुधवार को सिविल जज सीनियर डिविजन फास्ट ट्रैक कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। यह मामला वर्ष 1991 में दाखिल किया गया था और इसके अंतर्गत भगवान विश्वेश्वर मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़ा विवाद है। 32 साल पुराने इस मामले की सुनवाई अब अंतिम दौर में पहुंच चुकी है, जहां दोनों पक्ष अपनी-अपनी दलीलें न्यायालय के समक्ष रख रहे हैं।

    इस सुनवाई के दौरान वादी हिन्दू पक्ष के वकील विजय शंकर रस्तोगी ने अपनी दलीलें पेश कीं। यह मामला उस ऐतिहासिक दावे से जुड़ा है, जिसमें हिन्दू पक्ष ने Gyanvapi के सेंट्रल डोम के नीचे शिवलिंग होने का दावा किया था। हिन्दू पक्ष ने वर्ष 2019 में फिर से अदालत से गुहार लगाई कि एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) द्वारा ज्ञानवापी परिसर के बचे हुए हिस्से की खुदाई कराई जाए और तथ्यों की जांच की जाए।

    हिन्दू पक्ष का दावा है कि Gyanvapi मस्जिद के नीचे एक प्राचीन शिवलिंग मौजूद है, जिसके प्रमाण खुदाई से मिल सकते हैं। उन्होंने अदालत से इस मामले में व्यापक एएसआई सर्वे कराने की मांग की है ताकि धार्मिक स्थल की ऐतिहासिक स्थिति स्पष्ट हो सके। इस वाद के जरिए हिन्दू पक्ष ने पूरे परिसर का सर्वे कराने की गुहार लगाई है।

    हालांकि, इस दावे का प्रतिवादी मुस्लिम पक्ष और अंजुमन इंतजामिया कमेटी कड़ा विरोध कर रहे हैं। प्रतिवादी पक्ष का कहना है कि किसी भी प्रकार की खुदाई या सर्वे इस विवाद को और गहराएगा। उनका तर्क है कि धार्मिक ध्रुवीकरण से बचने के लिए इस तरह की मांगों को खारिज किया जाना चाहिए। इससे पहले की सुनवाई में वक्फ बोर्ड के वकील और अंजुमन इंतजामिया कमेटी ने भी अपने पक्ष में दलीलें दी थीं।

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    अब, अदालत ने अगली सुनवाई की तिथि 19 अक्टूबर तय की है, जिस दिन प्रतिवादी मुस्लिम पक्ष अपने तर्क पेश करेगा। अंजुमन इंतजामिया कमेटी के वकील हिन्दू पक्ष के दावों का खंडन करेंगे और अपनी प्रतिक्रिया न्यायालय के समक्ष रखेंगे। इसके बाद, अदालत दोनों पक्षों की दलीलें सुनकर पत्रावली को आदेश के लिए सुरक्षित रख सकती है।

    गौरतलब है कि वर्ष 1991 में इस वाद को अधिवक्ता दान बहादुर, सोमनाथ व्यास, डॉ. रामरंग शर्मा, और हरिहर पांडेय ने दायर किया था। बीच में इस मामले पर उच्च न्यायालय का स्थगन आदेश था, जो वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद निरस्त हुआ। तब से यह मामला फिर से चर्चा में आया और हिन्दू पक्ष की मांगें पुनः जोर पकड़ने लगीं।

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