Kannauj SP fight: कन्नौज में समाजवादी पार्टी के दो नेताओं के बीच हुए विवाद ने पार्टी की अंदरूनी कलह को उजागर कर दिया है। यह विवाद उस समय सामने आया जब Kannauj सदर तहसील परिसर में पार्टी के दो प्रमुख नेता आपस में भिड़ गए। बात इतनी बढ़ गई कि एक नेता ने दूसरे को सरेआम थप्पड़ जड़ दिए, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है।
घटना के अनुसार, पूर्व ब्लॉक प्रमुख रजनीकांत यादव जो अखिलेश यादव के करीबी माने जाते हैं, वह तहसील परिसर में एक वकील के चैंबर में बैठे थे। उसी समय लल्ला यादव वहां पहुंचे और दोनों के बीच कुर्सी पर बैठने को लेकर कहासुनी हो गई। देखते ही देखते विवाद बढ़ गया और लल्ला यादव ने रजनीकांत यादव का कॉलर पकड़कर 6-7 बार थप्पड़ जड़ दिए।
कन्नौज में सपा नेता के भाई ने पूर्व जिला पंचायत सदस्य की पिटाई कर दी। सदर तहसील कैंपस में कॉलर पकड़कर 6-7 थप्पड़ मारे..
खैर, हमे क्या करना !
दोनों ही यादव हैं, दोनों ही सपाई हैं, दोनों को ही गुंडागर्दी के संस्कार मिले हैं। pic.twitter.com/ft7kk4G3JX— 𝙼𝚛 𝚃𝚢𝚊𝚐𝚒 (@mktyaggi) July 23, 2025
वीडियो फुटेज में साफ देखा जा सकता है कि पहले दोनों के बीच तीखी बहस होती है और फिर अचानक लल्ला यादव आक्रामक हो जाते हैं। वे रजनीकांत का कॉलर पकड़ते हैं और लगातार तमाचे मारते हैं। आसपास मौजूद लोग तुरंत बीच-बचाव करते हैं और किसी तरह लल्ला यादव को वहां से हटाते हैं।
इस पूरे मामले में दिलचस्प बात यह है कि मारपीट करने वाला लल्ला यादव, Kannauj सपा के सक्रिय नेता डीएम यादव का भाई है। डीएम यादव और रजनीकांत यादव के बीच लंबे समय से राजनीतिक रंजिश चली आ रही है। दोनों के बीच जिला पंचायत सदस्य पद को लेकर पहले भी चुनावी मुकाबला हो चुका है।
रजनीकांत यादव जलालाबाद क्षेत्र के तिलपई गांव के रहने वाले हैं और वे समाजवादी पार्टी के पुराने और प्रभावशाली नेताओं में गिने जाते हैं। वे ब्लॉक प्रमुख भी रह चुके हैं और कन्नौज की सियासत में उनकी गहरी पकड़ मानी जाती है। वहीं डीएम यादव और उनके भाई लल्ला यादव खिवराजपुरवा गांव से हैं और पार्टी में अपनी मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, दोनों नेता एक कानूनी काम से तहसील परिसर पहुंचे थे, लेकिन कुर्सी पर बैठने को लेकर मामूली कहासुनी ने देखते ही देखते हिंसक रूप ले लिया।
इस घटना के बाद समाजवादी पार्टी की छवि पर सवाल उठने लगे हैं। हालांकि अभी तक पार्टी की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। लेकिन सियासी गलियारों में यह बहस जरूर शुरू हो गई है कि अगर पार्टी के भीतर ही अनुशासन नहीं रहेगा, तो जनता में कैसी छवि बनेगी।