Mohanlalganj Crime: जिस व्यक्ति ने थाने का मुख्य गेट बनवाकर खुद को समाजसेवी की छवि में स्थापित किया, वही अब कानून के शिकंजे में है। लखनऊ के मोहनलालगंज थाने में शानदार गेट और पुलिस चौकी के जीर्णोद्धार के पीछे जिस शख्स का नाम था – प्रमोद कुमार उपाध्याय – अब उसी थाने में उसके खिलाफ 23 मामले दर्ज हैं। हैरानी की बात यह है कि उसी गेट पर उसके नाम के साथ वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के नाम भी लिखे गए थे।
‘सेवा’ की आड़ में ठगी का खेल
प्रमोद ने खुद को समाजसेवी के रूप में प्रचारित करने के लिए कई योजनाएं शुरू कीं। वर्ष 2017 में उसने कानपुर के दो शहीद सैनिकों के परिवारों को मुफ्त प्लॉट देकर अपनी पैठ बनाई। एक विशेष कार्यक्रम में भागवताचार्य से प्लॉट की रजिस्ट्री कराकर उसे पब्लिसिटी भी मिली। इसके बाद उसने इसी ‘भरोसे’ को अपना हथियार बनाया और सस्ते प्लॉट देने के नाम पर 100 से अधिक सैन्य व सामान्य परिवारों से करोड़ों रुपये की ठगी कर डाली।
चार महीने में दर्ज हुए 19 नए केस
मूल रूप से उत्तर प्रदेश का निवासी प्रमोद उपाध्याय लंबे समय से फर्जीवाड़े में लिप्त था। मार्च में महाराष्ट्र की एक महिला लक्ष्मी देवी ने उसके खिलाफ केस दर्ज कराया, जिसके बाद एसीपी रजनीश वर्मा ने जब उसकी फाइलें खंगालीं तो सामने आया कि कुल 20 थानों में उसके खिलाफ केस दर्ज हैं। इनमें से 19 केस बीते चार महीनों में दर्ज हुए हैं।
गिरफ्तारी के लिए बनाई गई स्पेशल टीमें
जैसे-जैसे शिकायतें बढ़ीं, लखनऊ पुलिस और एसटीएफ हरकत में आई। डीसीपी नॉर्थन निपुण अग्रवाल और एसटीएफ ने मिलकर प्रमोद को दबोचने के लिए संयुक्त ऑपरेशन चलाया। एसीपी रजनीश वर्मा की अगुवाई में एक टीम बनी और आखिरकार रविवार को उसे गिरफ्तार कर लिया गया।
नाम, रसूख और शिलापट – लेकिन सब दिखावा
प्रमोद की सबसे बड़ी कामयाबी यही रही कि उसने पुलिस और समाज के बीच खुद को सेवा भाव वाला व्यक्ति साबित कर दिया। उसने थाने का गेट बनवाया, शिलापट पर नाम दर्ज करवाया, और पुलिस वालों से मेलजोल बनाकर खुद को अजेय समझ बैठा। लेकिन जब पीड़ितों ने आवाज उठाई, तो सच्चाई सामने आ गई।
अब प्रमोद उपाध्याय का नाम एक समाजसेवी के रूप में नहीं, बल्कि एक शातिर ठग के रूप में जाना जा रहा है – जिसने भरोसे का सौदा कर लोगों के खून-पसीने की कमाई पर हाथ साफ किया।