Izhar Ali resignation: यूपी की सियासत में गुरुवार को बड़ा उलटफेर हुआ जब सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) को एक तगड़ा झटका लगा। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और बिहार संगठन प्रभारी इजहार अली ने पद और प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इजहार अली ने अपने इस्तीफे में कैबिनेट मंत्री और सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि राजभर मुस्लिम और यादव वोटों की बदौलत चुनाव जीतकर सत्ता में आए, लेकिन अब मंत्री बनने के बाद अल्पसंख्यकों का अपमान कर रहे हैं और आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं।
इजहार अली ने पार्टी के भीतर गहराते परिवारवाद पर भी खुलकर हमला बोला। उन्होंने आरोप लगाया कि सुभासपा अब राजभर परिवार की निजी संपत्ति बन चुकी है। उनके अनुसार, “पहले पार्टी में ओमप्रकाश राजभर जिंदाबाद कहा जाता था, फिर बेटों का जिंदाबाद होने लगा और अब पोते का जिंदाबाद करने की स्थिति आ चुकी है।” इस्तीफे में उन्होंने तंज भरे अंदाज में लिखा, “अगर आंधियों को जिद है बिजलियां गिराने की, तो हमें भी जिद है वहीं आशियाना बनाने की।”
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Izhar Ali का राजनीतिक सफर लंबा रहा है। उन्होंने राजनीति की शुरुआत बसपा से की और बाद में सपा में भी सक्रिय रहे। वह मुलायम सिंह यादव को अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं। 2021 में इजहार अली ने सुभासपा का दामन थामा और कुछ ही समय में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बनने के साथ बिहार संगठन की जिम्मेदारी भी संभाली। पार्टी में उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती थी। इस्तीफे के बाद जब उनसे पूछा गया कि आगे किस दल में जाएंगे, तो उन्होंने कहा कि इस पर अभी कोई निर्णय नहीं लिया गया है। कार्यकर्ताओं से चर्चा के बाद ही भविष्य की राह तय होगी।
यह इस्तीफा ऐसे समय आया है जब सुभासपा पहले से ही आंतरिक संकट से जूझ रही है। इससे पहले अप्रैल में सुभासपा के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के 200 से अधिक मुस्लिम पदाधिकारियों ने भी पार्टी छोड़ दी थी। उस समय भी ओमप्रकाश राजभर पर परिवारवाद और अल्पसंख्यकों की अनदेखी करने के आरोप लगे थे।
Izhar Ali का इस्तीफा न केवल पार्टी की आंतरिक कलह को उजागर करता है बल्कि यूपी की सियासी समीकरणों पर भी असर डाल सकता है। मुस्लिम-यादव वोट बैंक पर पकड़ खोने की चिंता अब सुभासपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती बन गई है।