UP Madarsa Education Act 2004: यूपी मदरसा शिक्षा अधिनियम 2004 पर सुप्रीम कोर्ट फैसले से मदरसों के लिए राहत भरी खबर सामने आई है। अपने फैसले में शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया है, जिसमें मदरसों को असंवैधानिक करार दिया गया था। कोर्ट के इस फैसले से उत्तर प्रदेश के 16 हजार से ज्यादा मदरसों को फायदा होगा। यह फैसला चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में गठित तीन जजों की बेंच ने सुनाया गया है। फैसले में यूपी के मदरसों को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया गया।
दरअसल कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि किसी कानून को सिर्फ संविधान के मूल ढांचे के उल्लंघन का हवाला देकर रद्द नहीं किया जा सकता। ऐसा तभी किया जा सकता है, जब वह मौलिक अधिकारों के खिलाफ हो या फिर कानून सरकार ने बनाया हो, जिसे ऐसा करने का संवैधानिक अधिकार नहीं है, तो चलिए जानते हैं क्या है पूरा मामला।
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यूपी मदरसा शिक्षा अधिनियम 2004
बता दें कि, यूपी मदरसा शिक्षा अधिनियम 2004 को तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार ने बनाया था। इसमें कहा गया था कि सभी मदरसे सरकार के नियमों के अधीन होंगे। इस फैसले से यूपी के 16 हजार से ज्यादा पंजीकृत मदरसे सरकार के अधीन आ गए। 8 हजार अन्य मदरसे जो पंजीकृत नहीं हैं, उन्हें इस एक्ट से बाहर कर दिया गया। पूरे प्रदेश में 560 मदरसे हैं जो सरकारी फंड से चलते हैं।
सुप्रीम कोर्ट में दी गई थी ये दलीलें
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि मदरसे 1908 से चल रहे हैं साथ ही इनमें 10 हजार शिक्षक पढ़ा रहे हैं। अगर इन्हें खत्म कर दिया गया तो छात्रों को धार्मिक शिक्षा कैसे मिलेगी। याचिका में यह भी बताया गया कि मदरसे सरकारी आदेश से चल रहे हैं। सरकारी पाठ्यक्रम भी लागू किया जा रहा है।
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सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसले में क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा कि मदरसा बोर्ड और राज्य सरकार के पास शिक्षा का मानक तय करने का अधिकार है। शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए मदरसों को विनियमित कर सकती है। एक्ट की विधायी योजना मदरसों में निर्धारित शिक्षा के स्तर को मानकीकृत करना है। मदरसा अधिनियम मदरसों के दैनिक कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करता है और इसका उद्देश्य उत्तर प्रदेश राज्य में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना है और यह राज्य के सकारात्मक दायित्व के अनुरूप है।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि राज्य सरकार मदरसा शिक्षा के संबंध में नियम बना सकती है, हालांकि, किसी भी छात्र को धार्मिक शिक्षा लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि मदरसा बोर्ड फाजिल, कामिल जैसी उच्च स्तरीय डिग्री नहीं दे सकता है, जो यूजीसी अधिनियम के विपरीत है।