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Monday, October 13, 2025
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    वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा बयान: मौजूदा हालात बरकरार, अगली सुनवाई 5 मई को

    Supreme Court Ultimatum: सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम से जुड़ी याचिकाओं की सुनवाई के दौरान कहा कि वक्फ संपत्तियों की वर्तमान स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। कोर्ट ने केंद्र, राज्यों और वक्फ बोर्ड को आदेश दिया है कि वे सात दिन के भीतर अपना जवाब पेश करें।

    मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा कि 1995 और 2013 के वक्फ कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाएं अलग सूची में रखी जाएंगी और उन्हें अलग से सुना जाएगा। उन्होंने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे सभी याचिकाओं में से सिर्फ 5 मुख्य याचिकाएं चुनें, जिन्हें अदालत में प्रस्तुत किया जाएगा।

    CJI ने साफ किया कि शेष याचिकाएं निस्तारित मानी जाएंगी और भविष्य की सुनवाई की सूची में शामिल नहीं की जाएंगी। यह फैसला कोर्ट में लंबित 100 से अधिक याचिकाओं की सुनवाई को सरल और प्रभावी बनाने के उद्देश्य से लिया गया है। इस संवेदनशील मामले की अगली सुनवाई अब 5 मई को होगी।

    सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता पर केंद्र सरकार को सख्त अल्टीमेटम देते हुए सात दिनों का समय दिया है। अदालत ने केंद्र से इस कानून पर विस्तृत जवाब की मांग की है, साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि अगले आदेश तक वक्फ बोर्ड में कोई नई नियुक्ति नहीं की जा सकती। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह आदेश तब दिया जब इस कानून को चुनौती देने वाली 100 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई चल रही थी, जो इसे असंवैधानिक और भेदभावपूर्ण मानती हैं।

    सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र का पक्ष रखते हुए कहा कि यह कानून केवल एक सुधारात्मक उपाय है, जिसे वक्फ बोर्ड द्वारा अवैध रूप से अधिग्रहित संपत्तियों को लेकर लाया गया है। मेहता ने यह भी तर्क दिया कि इस कानून पर तत्काल रोक लगाना बहुत कठोर कदम होगा। लेकिन अदालत ने उनके तर्कों पर सवाल उठाए, खासकर ‘वक्फ बाय यूजर’ प्रावधान और गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में शामिल करने की व्यवस्था पर। Supreme Court ने यह पूछा कि यदि बिना पंजीकरण वाली वक्फ संपत्तियाँ हो तो उनका क्या होगा और क्या हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुस्लिम सदस्य नियुक्त किए जा सकते हैं।

    कई वरिष्ठ वकीलों ने इस कानून को मुस्लिम समुदाय के अधिकारों के खिलाफ बताया और इसे भेदभावपूर्ण करार दिया। कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और राजीव धवन जैसे प्रमुख वकीलों ने कोर्ट में दलील दी कि यह कानून संविधान के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। उन्होंने कोर्ट से इस पर तत्काल रोक लगाने की मांग की।

    सुनवाई के दौरान Supreme Court ने पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में कानून के खिलाफ हुई हिंसा पर भी चिंता व्यक्त की। CJI ने इसे “व्यथित करने वाला” कहा और कहा कि इस तरह की हिंसा अस्वीकार्य है, जबकि मेहता ने इसे राजनीतिक दबाव बनाने का प्रयास बताया।

    यह मामला अब केवल कानूनी नहीं बल्कि सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी अत्यधिक संवेदनशील बन गया है। अदालत का अगला आदेश और केंद्र का जवाब देशभर में इस कानून के भविष्य को लेकर महत्वपूर्ण दिशा तय करेंगे।

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