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Thursday, June 26, 2025
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उत्तर प्रदेश में मौसम के उतार-चढ़ाव, फसलों पर दिखा गहरा असर

UP News : उत्तर प्रदेश में लगातार हो रहे तापमान में उतार-चढ़ाव से फसलों को खतरा बढ़ गया है। खासतौर पर तिलहनी फसलों में माहू के प्रकोप और आलू में पछेती झुलसा रोग की समस्या पैदा हो सकती है। उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद (उपकार) ने इस संदर्भ में अलर्ट जारी किया है। विशेषज्ञों के अनुसार, शीतलहर के बावजूद तापमान में अधिक बदलाव नहीं हुआ है, जिससे फसलों में कीटों का हमला बढ़ने की संभावना है।

तिलहनी फसलों पर माहू का प्रकोप 

मौसम के इस उतार-चढ़ाव का सबसे ज्यादा असर तिलहनी फसलों पर पड़ा है। माहू कीट इन फसलों में निकलने वाले फूलों को चट कर जाता है, जिससे फसल की उत्पादकता पर सीधा असर पड़ता है। उत्तर प्रदेश में राई और सरसों की बुआई 13.57 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की गई है, और इस समय यह फसलें माहू के प्रकोप का शिकार हो सकती हैं। कृषि विशेषज्ञों ने किसानों को सलाह दी है कि वे कीटनाशक रसायनों का प्रयोग करें और विशेषज्ञों से मार्गदर्शन प्राप्त करें।

आलू में झुलसा रोग का खतरा

मौसम की स्थिति आलू की फसलों के लिए भी उपयुक्त नहीं रही है। यहां पर पछेती झुलसा रोग के मामले बढ़ रहे हैं, जो आलू की फसल के लिए बहुत हानिकारक है। उच्च तापमान और उमस की वजह से यह रोग फैल सकता है। मौसम विशेषज्ञ डॉ. एसएन सुनील पांडेय के अनुसार, तापमान में उतार-चढ़ाव से कीटों की गतिविधि बढ़ जाती है, जिससे फसलों पर रोगों का प्रकोप बढ़ता है।

फसलों में माहू और लीफ माइनर से बचाव के उपाय

किसानों को तिलहनी फसलों में माहू के प्रकोप और आलू में झुलसा रोग से बचाव के लिए कुछ उपाय अपनाने की आवश्यकता है। राई और सरसों की फसलों में लीफ माइनर के नियंत्रण के लिए डाईमैथोनेट 30 प्रतिशत ईसी या क्लोरपाईरीफॉस 20 प्रतिशत ईसी की 1 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 600 से 700 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव किया जा सकता है।

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माहू कीट के नियंत्रण के लिए डाईमेथोनेट 30 प्रतिशत ईसी 1.0 लीटर, डाईक्लोरोवॉस 76 प्रतिशत ईसी 500 मिली या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एसएल, 250 मिली मात्रा की 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

किसानों को मिली ये सलाह

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों को मौसम के उतार-चढ़ाव को देखते हुए सतर्क रहना चाहिए और फसलों में होने वाले कीटों और रोगों का समय पर उपचार करना चाहिए। विशेष रूप से तिलहनी फसलों और आलू में प्रकोप होने की संभावना है, इसलिए किसानों को रसायन और कीटनाशकों का सही तरीके से उपयोग करना चाहिए। इस मौसम में सावधानी बरतकर किसान अपनी फसल को सुरक्षित रख सकते हैं और बेहतर उपज प्राप्त कर सकते हैं।

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