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विवाह मानव जीवन के संस्कारो मे एक संस्कार है। यह बात तब और भी रोचक हो जाती है ज़ब विवाह प्रेम विवाह मे बदल जाए लेकिन कभी कभी प्रेम तो होता है लेकिन विवाह नहीं हो पाता। कभी कभी प्रेम विवाह से पूर्व तो प्रेम होता है, लेकिन बाद मे विवाद हो जाता है। हालांकि प्रेम विवाह का इतिहास मे भी जिक्र मिलता है जिसमे हरण से लेकर वरण तक कि चर्चा युग युग से आती है। प्रेमी और प्रेमिकाओ चर्चा साहित्यकारों नें भी की है -:
कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन मैं करत हैं, नैननु ही सब बात॥
लेकिन प्रेम तो प्रेम यह न तो कोई जाति देखें न उम्र। ज्योतिष मे प्रेम का कारक ग्रह शुक्र को माना जाता है जोकि अकेला ही प्रेम प्रसंग चलाने मे सक्षम है। यह दूषित होने पर पर प्रेम के कारण संकट,पीड़ा, अवसाद, करियर का तबाह होना, मारपीट, आशिकी मे पिट जाना व स्कैडल मे भी डाल देता है। प्रेम विवाह भी सजातीय, विजातीय, बड़े व छोटे होने वाले होते है। यदि प्रेम विवाह मे शुभग्रहों की भूमिका बन जाए तो समाज की मान्यता मिल जाती है यदि पाप ग्रहों की भूमिका हो जाए तो विवाद उत्पन्न हो जाता है। कही ऐसा भी देखने को मिल जाता है प्रेम प्रसंग तो चलता है लेकिन विवाह नहीं होता या एक से अधिक प्रेम प्रसंग चलते है।
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*यदि कुंडली मे पंचमेश सप्तमेश का संबंध हो तो प्रेम विवाह होता है।
*पंचमेश सप्तमेश का परिवर्तन योग हो व स्वामी से देखें जाते हो तो प्रेम विवाह होता है।
*पंचमेश सप्तमेश शुभ स्थानों मे हो तो मान्यता मिल जाती है व अशुभ स्थानों मे हो तो मुक़दमे बाज़ी हो जाती है।
*लग्नेश पंचमेश सप्तमेश यदि सम्बन्ध रखते है तो प्रबल योग बन जाता है।
*नवम भाव सप्तम भाव का अर्गला स्थान है इसलिए वहाँ पाप ग्रह होने पर एक से अधिक प्रेम विवाह हो जाते है।
*शनि राहु केतु व मंगल का संयोग होने से या सम्बन्ध होने से प्रेम विवाह मे बाधा या विवाह के उपरांत परेशनी सम्भव हो जाति है।
इन सभी योगो का अध्ययन करते समय नवमांश दाराकारक व विशेष रूप से शुक्र व प्रभाव पर अध्ययन अवश्य ही करना चाहिए।
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