Chandrashekhar Azad Protest: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हुए बवाल के बाद आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के नेता और नगीना से सांसद चंद्रशेखर आज़ाद चर्चा में आ गए हैं। भीम आर्मी के झंडे के साथ हिंसा में शामिल भीड़ को लेकर चंद्रशेखर आज़ाद ने साफ तौर पर पल्ला झाड़ लिया। उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति नीला गमछा या झंडा लेकर चल सकता है, इससे वह हमारा समर्थक नहीं हो जाता।
प्रयागराज के करछना इलाके में जब भीम आर्मी समर्थकों ने गाड़ियों में आगजनी की, पुलिस पर हमला किया और हंगामा मचाया, तब चंद्रशेखर आज़ाद से सवाल किए गए कि क्या यह उनके कार्यकर्ता थे? इस पर वह भड़क गए और कहा कि मीडिया बिना जांच के ही फैसला सुना देती है। उन्होंने आरोप लगाया कि मीडिया का रवैया हमेशा से कमजोर वर्गों के खिलाफ रहता है और मीडिया पहले ही यह मान लेती है कि नीले झंडे वाले लोग भीम आर्मी के ही हैं।
Chandrashekhar Azad ने खुद को हिंसा से अलग करते हुए कहा कि न तो वह मौके पर थे और न ही उन्होंने किसी को हिंसा करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि पुलिस मामले की जांच करे और जो दोषी हैं, उन पर कार्रवाई करे, लेकिन बेगुनाह कार्यकर्ताओं को परेशान न किया जाए।
दरअसल, Chandrashekhar Azad प्रयागराज के करछना और कौशांबी के दो दलित परिवारों से मिलने जा रहे थे। कौशांबी में पाल समाज की एक 8 साल की बच्ची से रेप का मामला सामने आया था और करछना के इसौटा गांव में दलित युवक देवी शंकर की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। चंद्रशेखर इन परिवारों से मिलकर न्याय की मांग करना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें प्रयागराज एयरपोर्ट से निकलने के बाद सर्किट हाउस में रोक लिया।
Chandrashekhar Azad का आरोप है कि पुलिस और प्रशासन ने उन्हें पीड़ित परिवारों से मिलने से जानबूझकर रोका। उनका कहना है कि प्रयागराज में हिंसा को कौशांबी की घटना से ध्यान भटकाने के लिए साजिश के तहत भड़काया गया।
इस बीच कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने भी सरकार पर सवाल उठाए और कहा कि चंद्रशेखर को पीड़ित परिवारों से मिलने से रोकना गलत था। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार खुद इस बवाल की पटकथा लिख रही थी।
हिंसा के बाद करछना थाने में पुलिस ने 50 नामजद और 500 से अधिक अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया है। कई गाड़ियां जलाई गईं, पुलिस पर हमला किया गया और मौके से लावारिस बाइकें भी बरामद हुईं।
सबसे बड़ी बात यह रही कि जिस भीड़ ने Chandrashekhar Azad के समर्थन में सड़कों पर प्रदर्शन किया, वही लोग बाद में चंद्रशेखर के बयानों में “अपने नहीं” साबित कर दिए गए। अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या चंद्रशेखर ने प्रशासनिक दबाव में अपने कार्यकर्ताओं को छोड़ दिया या यह उनकी सियासी रणनीति का हिस्सा था?
लोग अब यह पूछ रहे हैं कि क्या ‘रावण’ अपने सिपाहियों के साथ खड़े भी होते हैं या मुश्किल आने पर उनसे किनारा कर लेते हैं?