Pooja Pal expulsion: उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल मचाते हुए समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रयागराज की चायल सीट से विधायक पूजा पाल को तत्काल प्रभाव से पार्टी से निष्कासित कर दिया। विधानसभा के मानसून सत्र में उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कानून व्यवस्था और जीरो टॉलरेंस नीति की खुलकर सराहना की थी। पूजा ने ‘विजन डॉक्यूमेंट 2047’ पर चर्चा के दौरान कहा कि योगी सरकार ने उनके पति और पूर्व विधायक राजू पाल के हत्यारे माफिया-राजनेता अतीक अहमद के खिलाफ सख्त कार्रवाई की और उन्हें न्याय दिलाया। इस बयान को सपा ने पार्टी विरोधी गतिविधि माना।
सपा द्वारा जारी पत्र में कहा गया कि पूजा पाल बार-बार चेतावनी देने के बावजूद पार्टी विरोधी रवैया अपनाती रहीं, जिससे संगठन को नुकसान पहुंचा। इसके चलते उन्हें सभी पदों से हटाकर पार्टी से निष्कासित किया गया।
पूजा पाल का राजनीतिक सफर संघर्षों से भरा रहा है। 2005 में पति राजू पाल की हत्या के बाद उन्होंने राजनीति में कदम रखा और बसपा के टिकट पर चायल उपचुनाव जीता। 2012 में फिर विधायक बनीं, लेकिन 2014 में बसपा ने उन्हें बाहर कर दिया। 2019 में वे सपा में शामिल हुईं और 2022 में विधायक चुनी गईं।
यह पहला मौका नहीं है जब वे विवादों में रही हों। फरवरी 2024 के राज्यसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की थी। इसके अलावा हाल में फूलपुर उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी दीपक पटेल के लिए प्रचार भी किया, जिससे उनके भाजपा में जाने की अटकलें तेज हो गईं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उनका निष्कासन सपा के मूल वोट बैंक पर असर नहीं डालेगा, क्योंकि वे कुर्मी समुदाय से आती हैं, जो सपा का पारंपरिक आधार नहीं है। फिर भी कुछ क्षेत्रों में सवर्ण वोटरों में असंतोष संभव है।
सपा के चीफ व्हिप कमाल अख्तर ने आरोप लगाया कि Pooja Pal का बयान सुनियोजित था और भाजपा के इशारे पर दिया गया। उन्होंने कहा कि अगर उन्हें पार्टी की नीतियों से आपत्ति थी, तो उन्हें सपा में शामिल ही नहीं होना चाहिए था।
Pooja Pal का यह कदम और निष्कासन आने वाले उपचुनावों और 2027 विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित कर सकता है। अब नजरें इस पर हैं कि क्या वे आधिकारिक रूप से भाजपा में शामिल होती हैं और इसका सियासी असर कितना गहरा होगा।