गाजियाबाद। एक तरफ जहां बुलडोजर बाबा यानि योगीजी की सरकार जिले के विकास के लिए लगातार प्रयास कर रही है, वहीं पिछले कुछ समय से इस जिले में अफसरशाही और सत्तारूढ़ दल के जनप्रतिनिधियों के बीच चल रही महाभारत ने जिले के विकास की गाड़ी के पहियों को दिशाहीन कर दिया।इसके चलते न सिर्फ विकास कार्य प्रभावित हो रहे हैं,
बल्कि अफसरशाही और जनप्रतिनिधियों की रार में सरकारी कर्मचारियों को भी दिक्कत से दो-चार होना पड़ रहा है।जी हां हम बात कर रहे हैं गाजियाबाद के पुलिस कमिश्नर अजय कुमार मिश्रा और बीजेपी के लोनी से विधायक नंदकिशोर गूर्जर के बीच चल रही रार की। ठीक इनकी ही तरह नगर निगम के आयुक्त विक्रमादित्य सिंह मलिक और बीजेपी की वरिष्ठ नेता और महापौर सुनीता दयाल के बीच की महाभारत ने नगर निगम के कामकाज को भी काफी हद तक प्रभावित कर रखा है। जिसका असर न सिर्फ सरकारी और विकास से जुड़े कामकाज पर पड़ रहा है, वहीं योगी बाबा की सरकार पर भी बट्टा लगाने का काम हो रहा है।
नंदकिशोर गूर्जर-पुलिस कमिश्नर की रार
अपने बेबाक कार्यशैली और बयानों की वजह से अक्सर चर्चाओं में रहने वाले लोनी के बीजेपी विधायक नंदकिशोर गूर्जर और जिले के पुलिस कमिश्नर सीनियर आईएएस अजय कुमार मिश्रा के बीच की तल्खियां उस वक्त से ज्यादा बढ़ी हैं जबसे अजय मिश्रा ने नंदकिशोर गूर्जर की सुरक्षा में कटौती की थी। उसके बाद से लगातार ये तल्खियां जिले में होने वाली
वारदातों को लेकर विधायक के बयानों और कमिश्नर के मातहतों के कुछ फैसलों की वजह से सामने आती रहीं। तल्खियां यहां तक बढ़ीं कि विधायक नंदकिशोर ने अजय मिश्रा की तुलना वायसराय से कर डाली। जिले में होने वाली संगीन वारदातें चाहें वे गौकशी से संबंधित हों या फिर किसी अन्य अपराध से जुड़ीं विधायक नंदकिशोर पुलिस की खामियों को लेकर पुलिस कमिश्नर को घेरने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते।
उधर, पुलिस कमिश्नर भी किसी मामले में कम नही हैं। अपने रसूख को साबित करने के लिए वे कुछ स्थानीय अखबारों और मीडिया संस्थानों का सहारा लेकर यदा-कदा नंदकिशोर गूर्जर पर भी निशाना लगवाने से नहीं चूकते। जबकि नंदकिशोर गूर्जर जिस मुद्दे पर कानून व्यवस्था पर सवाल उठवाते हैं उसी मुद्दे पर अखबारों में पुलिस की वाहवाही छपवाकर ईंट का जवाब पत्थर से देने का काम करते हैं।
महापौर-नगर आयुक्त में तनी हैं तलवार
बीजेपी उत्तर प्रदेश की उपाध्यक्ष और गाजियाबाद की महापौर सुनीता दयाल का आईएएस और नगर आयुक्त विक्रमादित्य सिंह मलिक से विवाद भी कुछ ऐसा ही है। पिछले दिनों नगर आयुक्त के एक निर्देश के बाद दोनों खुलकर एक-दूसरे के विरोध में आ गए हैं। नगर आयुक्त ने उन्हें कुछ पार्षदों और निगम कर्मियों से मिली शिकायत के बाद एक आदेश जारी किया था।
जिसमें उन्होंने जनप्रतिनिधियों के पति के द्वारा सरकारी फाईलों को देखने या मंगाने पर रोक लगा दी थी। माना ये जा रहा था कि ये रोक महापौर के पति के निगम की फाईलों की पड़ताल करने की जानकारी मिलने पर लगाई गई थी। इस आदेश के बाद यकायक महापौर आक्रामक हुईं और निगम से जुड़े कई फैसलों में नगर आयुक्त और महापौर खुलकर एक-दूसरे का विरोध करने लगे।
ताजा मामला नगर निगम के बढ़े टैक्स का ही ले लीजिए। जहां नगर आयुक्त 10 प्रतिशत छूट की योजना के साथ अवकाश में भी कैंप लगवाकर टैक्स के जरिये राजस्व बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं महापौर ने लोगों से समाचार पत्रों और अन्य मीडिया प्लेटफार्म के जरिये ये अपील कर डाली कि कोई भी बढ़ा हुआ टैक्स जमा न करे। जाहिर है कि इस तरह की खींचतान का असर निगम के कामकाज के साथ-साथ निगम के राजस्व पर भी पड़ना लाजमी है।
किरकिरी हो रही है बाबा की सरकार की
चाहें विवाद पुलिस कमिश्नर और बीजेपी विधायक नंदकिशोर गूर्जर का हो। या फिर नगर आयुक्त और महापौर सुनीता दयाल का…इस मामले में किरकिरी हर तरफ सरकार की ही हो रही है। जाहिर है कि विपक्ष को भी इसका मजा लेने और योगी सरकार को कटघरे में खड़ा करने का मौका मिल रहा है। सभी सवाल कर रहे हैं कि आखिर अपनी ही सरकार के कामकाज के विरोध में जनप्रतिनिधि आखिर क्या दर्शाना चाहते हैं ?
कांग्रेस ने कहा-सब कमीशन के बंदरबांट की रार
बीजेपी के जनप्रतिनिधियों और अफसरशाही के बीच चल रही इस रार पर कांग्रेस के जिलाध्यक्ष विनीत त्यागी का सीधा कहना है कि ये लड़ाई सिर्फ और सिर्फ कमीशनखोरी के पैसे के बंदरबांट को लेकर है। उन्होंने कहा कि जब सत्ता पर अनुभवहीन काबिज होते हैं तो इसी तरह के हालात होते हैं। उन्होंने कहा कि सीएम योगी के नेतृत्व में तमाम अनुभवहीन लोग ऐसे पावर में हैं जो सरकारी मशीनरी के साथ तालमेल बैठाकर विकास के कार्य कर ही नहीं पा रहे। उसका नतीजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है।
सपा बोली-जनप्रतिनिधि परेशान, तो सोचो जनता का क्या हाल ?
समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष फैजल हुसैन का इस मसले पर कहना है कि बीजेपी ने झूठे वायदे करके सत्ता तो हासिल कर ली, मगर जनता की सुनवाई हो ही नहीं रही। ई-रिक्शा वाले मामले को देख लें रोजगार देने की बजाय बेरोजगारी को बढ़ावा देने वाले फैसले लिए जा रहे हैं। जनता का काम सरकार में हो नहीं रहा।
ऐसे में जनता के वोट से चुनकर आए प्रतिनिधि क्या करें ? उनके पास अपनी ही सरकार के अफसरों के खिलाफ विरोध करने के अलावा कोई चारा नहीं है। विपक्ष गरीबों-किसानों की लड़ाई लड़ रहा है और क्रेडिट लेने के नाम पर केवल सत्तारूढ़ दल के लोग आ जाते हैं। केवल हिंदू-मुस्लिम माहौल बिगाड़ने के अलावा इस सरकार में कुछ नहीं हो रहा। तमाम विकास के काम केवल कागजों पर चल रहे हैं।
तिजोरी में कैद हो गई राजनीति-सतपाल चौधरी
आजाद समाज पार्टी के नेता और उप-चुनाव में पार्टी के प्रत्याशी सतपाल चौधरी का इस मामले में कहना है कि ये सारी लड़ाई पैसे के बंदरबांट को लेकर हो रही है। राजनीति में व्यापारियों का प्रवेश कराकर राजनीति को पूरी तरह से तिजोरियों में कैद कर देने का काम मोदी-योगी सरकार ने किया है। न गरीब की समस्याओं का निराकरण हो रहा है, न किसान और बेरोजगारों पर ध्यान दिया जा रहा है। उनका कहना है कि इस सरकार में सब केवल अपनी जेबें भरने में लगे हैं।