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Monday, August 18, 2025
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वरलक्ष्मी व्रत में पढ़ें ये पौराणिक कथा और आरती, मां लक्ष्मी की कृपा से खुलेंगे सुख के द्वार

Varalakshmi Vrat 2025: वरलक्ष्मी व्रत इस बार 8 अगस्त यानी कि आज मनाया जा रहा है। कहा जाता है कि यह दिन दिवाली की तरह मनाया जाता है, इस दिन माँ लक्ष्मी की भव्य पूजा की जाती है। मान्यता है कि सावन माह के अंतिम शुक्रवार को किया जाने वाला यह व्रत कलियुग में सौभाग्य प्राप्ति की कुंजी है। इसके फलस्वरूप दरिद्र भी धनवान बन जाते हैं। वरलक्ष्मी व्रत के दिन कथा पढ़ने मात्र से ही सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

जानिए क्या है वरलक्ष्मी की व्रत कथा

वरलक्ष्मी व्रत कथा के अनुसार, प्राचीन काल में मगध राज्य में कुण्डी नाम का एक नगर था। यह नगर मगध राज्य के मध्य में बसा था। इस नगर में चारुमति नामक एक ब्राह्मण स्त्री अपने परिवार के साथ रहती थी। माँ लक्ष्मी की उस पर गहरी आस्था थी। वह प्रतिदिन माँ लक्ष्मी की पूजा करती थी। एक रात माँ लक्ष्मी उस स्त्री पर प्रसन्न हुईं और उसे स्वप्न में दर्शन देकर वर लक्ष्मी नामक व्रत करने का सुझाव दिया और कहा कि इस व्रत के प्रभाव से तुम्हें मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी।

अगली सुबह चारुमति ने समाज की अन्य स्त्रियों के साथ माँ लक्ष्मी द्वारा बताए अनुसार वर लक्ष्मी व्रत किया। पूजा संपन्न होने के बाद सभी स्त्रियाँ कलश की परिक्रमा करने लगीं। परिक्रमा करते समय सभी स्त्रियों के शरीर विभिन्न स्वर्ण आभूषणों से सुसज्जित थे। उनके घर भी स्वर्ण से सुसज्जित थे। घोड़े, हाथी, गाय आदि पशु भी आए थे। बाद में भगवान शिव ने यह कथा माँ पार्वती को सुनाई। माँ पार्वती ने भी यह व्रत किया।

वरलक्ष्मी व्रत की आरती

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता

तुमको निस दिन सेवत हर – विष्णु – विधाता, ॐ जय….

उमा , रमा ,ब्रह्माणी, तुम ही जग माता

सूर्य-चन्द्रमा ध्यान करते, नारद ऋषि गाते, ॐ जय….

आप पाताल-निरंजनी, सुख-संपत्ति दाता हैं

जो कोई तुमको ध्याता, वह ऋद्धि-सिद्धि-धन पाता, ॐ जय….

तुम पाताल – निवासिनि, तुम ही शुभदाता

कर्म – प्रभाव – प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता, ॐ जय….

जिस घर तुम रहती, तहं सब सद्गुण आता

सब संभव हो जाता, मन नहिं घबराता, ॐ जय….

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता

खान – पान का वैभव सब तुमसे आता, ॐ जय….

शुभ – गुण मंदिर सुंदर, क्षीर निधि जाता

रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहीं पता, ॐ जय….

महालक्ष्मीजी जी की आरती, जो कोई नर गाता

उर आनंद समाता, पाप उतर जाता, ॐ जय……

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