हरियाणा से बीजेपी ने एक ऐसी चाल चली है जिससे आने वाले 2024 चुनाव से पहले विपक्ष पस्त हो जाएगा. इस फैसले का असर सिर्फ हरियाणा तक सीमित नहीं रहेगा. बल्कि यूपी से होकर बिहार तक जाएगा. क्योंकि जिस ओबीसी कार्ड के सहारे पूरा विपक्ष उम्मीद लगाये बैठा है, उसकी काट के लिए ओबीसी का पत्ता ही पीएम मोदी ने फेंका है.
हरियाणा की राजनीति में कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों का एक पैटर्न रहा है. कि अगर सीएम जाट होता है तो प्रदेश अध्यक्ष दलित, ओबीसी या पंजाबी होता है. लेकिन इस बार बीजेपी ने एक पंजाबी को सीएम बनाया था तो प्रदेश अध्यक्ष ओपी धनखड़ थे, मतलब एक जाट चेहरा. लेकिन अब बीजेपी ने धनखड़ को हटाकर नायब सैनी को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप दी है.
Nayab Saini को ही क्यों चुना?
इसके पीछे कई वजहें हैं. ये फैसला सिर्फ हरियाणा के लिए नहीं लिया गया है क्योंकि हरियाणा में जाटों को इग्नोर करना आसान नहीं है. वहां उनकी संख्या बड़ी है लेकिन फिर भी बीजेपी ने ये रिस्क लिया है तो उसके पीछे कई फैक्टर हैं.
- पहला- किसान आंदोलन और फिर पहलवानों के आंदोलन ने जाटों को पहले ही बीजेपी से दूर कर दिया है.
- दूसरा- कांग्रेस की कमान भूपेंद्र सिंह हुड्डा के हाथ में हैं जो जाट लीडर माने जाते हैं. जेजेपी देवीलाल के एक पोते की पार्टी है जो पूरे तरीके से जाट वोटों पर निर्भर है और इनेलो भी देवीलाल के दूसरे पोते की पार्टी है जो जाट वोटों पर ही चलती है.
- तीसरा- बीजेपी ओबीसी चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर बाकी जातियों को एक संदेश देकर चुनाव 35 बनाम एक बिरादरी बनाने का प्लान कर रही है.
- चौथा- नायब सैनी मुख्यमंत्री मनोहर लाल के करीबी नेताओं में से एक हैं, उनकी हर बात मानते हैं. इससे उन्हें अनिल विज जैसे सीनियर लीडर्स को काबू रखने में आसानी होगी.
लेकिन ये कहानी सिर्फ हरियाणा के लिए नहीं है. बीजेपी ये संदेश देना चाहती है कि ओबीसी समुदाय के लिए जितना वो सोचती है उतना कोई पार्टी नहीं सोच पाएगी. जाट वोटर्स को किनारे लगाने से यूपी में भी बड़ा असर पड़ेगा और ओबीसी समुदाय को एकजुट रखने में आसानी होगी.
जिनको जातिगत जनगणना के सब्जबाग दिखाकर अखिलेश यादव अपनी वापसी के सपने देख रहे हैं. दरअसल बिहार से जो बीज ओबीसी और बाकी वर्गों के बीत बोने की कोशिश हुई है. पीएम मोदी किसी भी कीमत पर उसका असर कम करना चाहतें हैं. क्योंकि उनको पता है कि इस तरह से जातियों में बांटकर राजनीति करना देशहित में नहीं है.
नायब सिंह सैनी 2014 में मुख्य धारा की राजनीति में आए और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. 9 साल के दरम्यान पहले विधायक बने, फिर राज्य सरकार में मंत्री, उसके बाद लोकसभा सांसद और अब संगठन में सबसे बड़ी जिम्मेदारी मिल गई है. सैनी को मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का भी विश्वासपात्र माना जाता है.
संगठन में भी सैनी की पकड़ मानी जाती है. जब सैनी 2019 में सांसद बने तो बीजेपी ने ना सिर्फ हरियाणा की सभी 10 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी, बल्कि पार्टी उम्मीदवारों ने बड़े अंतर से विपक्ष के प्रत्याशियों को पटखनी दी थी.
हरियाणा में ओबीसी समुदाय का दबदबा है. खासतौर पर जाटलैंड में बीजेपी अपनी पकड़ को ढीला नहीं होने देना चाहती है. यही वजह है कि पार्टी ने कम समय में ज्यादा पॉपुलर्टी पाने वाले नायक सिंह सैनी को सबसे बेहतर चेहरा माना. इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि खट्टर की पसंद का भी ख्याल रखा गया है.
हरियाणा में जाट समुदाय की संख्या सबसे ज्यादा है. लेकिन ओबीसी अगर एक साथ आ जाते हैं तो उनकी संख्या ज्यादा हो जाती है.