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Tuesday, July 29, 2025
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‘ऑपरेशन सिंदूर में अब क्या?’ – शहीद मेजर शुभम की पत्नी ने संसद से पहले पूछे सवाल, बहस के केंद्र में आतंकी हमले की आग

Aishnya Dwivedi On Parliament Monsoon Session 2025: संसद का मानसून सत्र 2025 जैसे-जैसे गरमाता जा रहा है, देश की निगाहें एक ही सवाल पर टिक गई हैं—क्या ऑपरेशन सिंदूर अब भी ज़िंदा है या वो बस एक चुनावी नारा बनकर रह गया है? पहलगाम आतंकी हमले में शहीद हुए मेजर शुभम द्विवेदी की पत्नी ऐशन्या ने संसद में होने वाली बहस से ठीक पहले वही सवाल उठाया है, जो करोड़ों भारतीयों के दिल में खदबदा रहा है: “अब ऑपरेशन सिंदूर में क्या हो रहा है?”

आजतक से बातचीत में ऐशन्या ने साफ कहा कि संसद की बहस का असली फोकस सिर्फ और सिर्फ आतंकवाद के खात्मे पर होना चाहिए। “प्रधानमंत्री ने खुद कहा था कि ऑपरेशन सिंदूर तब तक जारी रहेगा, जब तक अंतिम आतंकी जिंदा है। फिर अब क्यों खामोशी है?” Aishnya Dwivedi का ये सवाल सिर्फ एक पत्नी का दर्द नहीं, बल्कि उस राष्ट्र की पुकार है जिसने अपने 26 बेटे एक ही दिन में खो दिए।

उन्होंने चेताया कि इस मामले को राजनीति का अखाड़ा न बनने दिया जाए। “मेरे पति शुभम और उन 25 और जवानों की शहादत किसी दल की विचारधारा का हिस्सा नहीं, बल्कि पूरे भारत का अपमान है अगर हम चुप रहे,” उन्होंने तीखे लहजे में कहा। ऐशन्या ने पूर्व वित्त मंत्री के उस बयान पर भी नाराज़गी जताई जिसमें कहा गया कि हमलावर पाकिस्तानी नहीं थे। “जब तक नेताओं के अपने घरों में आग नहीं लगेगी, उन्हें फर्क नहीं पड़ेगा,” उन्होंने भावुक अंदाज में कहा।

वो यहीं नहीं रुकीं। Aishnya Dwivedi ने भारतीय सेना के जज़्बे को सलाम करते हुए कहा कि वह खुद कुछ जवानों से मिली हैं—उनके भीतर आक्रोश है, लेकिन अनुशासन भी। ऑपरेशन सिंदूर उनके लिए मिशन नहीं, बदला है।

Aishnya Dwivedi ने कहा कि पाकिस्तान को करारा जवाब सिर्फ तब मिलेगा जब ऑपरेशन लंबा, व्यापक और निर्णायक हो। “ये कोई तीन दिन की सर्जिकल स्ट्राइक नहीं, बल्कि आतंकवाद के डीएनए को जड़ से खत्म करने का युद्ध है।”

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की सीजफायर पहल पर भी उन्होंने दो टूक कहा, “भारत में डर नहीं है। ट्रंप को 26 शहीदों की तस्वीरें दिखाइए, शायद तब उन्हें समझ आए सीजफायर का वक़्त नहीं था।”

संदेश साफ है—देश अब बहस नहीं, एक्शन चाहता है। और ऐशन्या की आवाज़, आज संसद में गूंजनी चाहिए, सिर्फ श्रद्धांजलियों के लिए नहीं, बल्कि जवाबदेही के लिए।

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