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Saturday, November 9, 2024
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सेलिब्रेटी जिताओ, विकास भूल जाओ!

(इनपुट- मोहसिन खान)

Noida: ख़बर वाजिब और जनता से सीधी जुड़ी हुई है, इसलिए एक शेर याद आ रहा है कि ‘खुदा किसी को इतनी खुदाई ना दें कि अपने सिवा कुछ दिखाई ना दें’, जिनका हम आज ज़िक्र करने जा रहे है कि उनको पहले खुदाई सिनेमा से मिली और अब सियासत से, लिहाज़ा अपने सिवा उनको दिखना बंद हो गया है।

फिर चाहे वो उनका संसदीय क्षेत्र हो या फिर उनके संसदीय क्षेत्र की जनता ही क्यों ना हो, ये है बीजेपी के सेलिब्रेटी सांसद कंगना रणौत और छोटे पर्दे पर प्रभु श्रीराम को घर घर में जीवंत करने वाले मेरठ-हापुड़ लोकसभा सीट से सांसद अरूण गोविल, जनता ने जिताया तो इस उम्मीद से था कि इलाके का विकास होगा और सेलिब्रेटी सांसद से किसी काम के लिए आसानी से मुलाकात होगी।

लेकिन यहां तो पासा ही पलट गया, जैसे एक कहावत कही जाती है कि दूर दराज़ गांव में रहने वाले लोगो से दिल्ली काफी दूर है, वैसे ही हिमाचल प्रदेश की मंडी लोकसभा और मेरठ-हापुड़ लोकसभा से सांसद वहां की जनता से दूर है, यानि बात निकलकर ये सामने आ रही है कि ‘सेलिब्रेटी जिताओ और विकास भूल जाओ।

कंगना का मंडी में अभी खाली है विकास का ‘अंगना’

‘फैशन’ का जलवा बिखेरा तो सिनेमा पर छा गई, ‘तेजस’ बनकर सियासत पर आई और आते ही हिमाचल प्रदेश की मंडी लोकसभा से चुनाव जीतकर बनी ‘क्वीन’ कंगना (Kangana Ranaut) ने अपनी बयानबाज़ी से किसानों से ‘पंगा’ ले लिया, खैर ये तो बात रही उनकी सिनेमा से सियासत तक के एक सफर की, लेकिन हम बात कर रहे है मैडम की मंडी लोकसभा और 100 दिन के रोड़मैप की, दरअसल मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के 100 दिन 17 सितंबर को पूरे हो गए और ऐसे में मंडी से सांसद कंगना रणौत केवल अपने संसदीय क्षेत्र में केवल 4 बार ही आई और इस बीच वो 20 दिन से ज्यादा यहां नहीं रूकी।

हां इतना ज़रूर है कि हिमाचल में प्राकृतिक आपदा आने के बाद प्रभावित हुए मंडी लोकसभा में उन्होंने दौरा किया, फौरी तौर पर लोगो से बातचीत की और फिर वहीं आश्वासनों का झुनझुना उनके हाथों में थमा दिया। बता दें कि मंडी लोकसभा में वाटर सप्लाई से लेकर आवारा पशुओं की सबसे बड़ी समस्या है, लेकिन कंगना (Kangana Ranaut) को इससे कोई लेना-देना नहीं है, उन्होंने 100 दिनों में अगर कुछ किया तो वो है विवादित बयानबाज़ी और सुर्खियों में रहने के लिए ससंद भवन से कुछ तस्वीरें, जबकि एजेंडे पर काम होना अभी बाकी है।

मैडम से मिलने के लिए आम जनता दूर है, क्योंकि उनसे मिलने के लिए आधार कार्ड से लेकर तमाम औपचारिकताएं पूरी करनी होगी, अब सोचिए कि अगर इतनी औपचारिकताएं ही पूरी करनी है तो फिर जनप्रतिनिधि की जगह इनको ‘ख़ास प्रतिनिधि’ का तमगा मिले।

मेरठ के मन में बसे ‘राम’, तो विकास का हुआ ‘काम-तमाम’!

मेरठ-हापुड़ लोकसभा सीट से अरूण गोविल (Arun Govil) के नाम ऐलान हुआ तो घर-घर से यही चल निकला कि ‘राम आएंगे तो अंगना सजाउंगी’ और हुआ भी यही मेरठ और हापुड़ की जनता ने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी अंगना भी स्वागत में ऐसा सजा कि घर घर में प्रभु श्रीराम को छोटे पर्दे के जरिए जीवंत करने वाले अरूण गोविल को सांसद बना दिया।

लेकिन 100 दिन के रोडमैप में मेरठ के मन में बसे ‘राम’ ने तो विकास की सोची ही नहीं, चलिए से मान लिया कि 100 दिन के भीतर कोई विकास नहीं होता, लेकिन उस पर होमवर्क तो किया जा सकता था, लेकिन ये सब तो तब होता जब सांसद महोदय मेरठ में कुछ दिन टिकते, सांसद बनने के बाद 10 से 12 बार मेरठ आए अरूण गोविल (Arun Govil) कुछ ही दिन मेरठ में रूके और सबसे बड़ी बात ये कि वो किसी जनता के सरोकार से मेरठ नहीं आए बल्कि कुछ खास मौकों पर ही मेरठ आए।

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जबकि मेरठ में मूलभूत समस्याओं का अंबार लगा हुआ है, हालाकि सांसद अरूण गोविल ने मेरठ के पॉश एरिया डिफेंस कॉलोनी में मकान लिया है, वो भी ऐसी जगह कि जहां एक गांव के आम आदमी की पहुंच बहुत दूर है, अरबोपतियों की इस कॉलोनी में मैला कुचला कुर्ता-पायजामा पहनकर घुस नहीं पाएगा तो फिर समझ लीजिए कि कैसे सांसद जी तक पहुंचेगा आम आदमी।

दरअसल बड़ी बात ये है कि सांसद बनने के बाद भी अरूण गोविल अभी तक सिनेमा की दुनिया से बाहर नहीं आ पा रहे है और उनका ये रवैया चुनाव प्रचार के दौरान भी देखने के लिए मिला था पार्टी के बड़े नेता उनका इंतज़ार करते थे और वो शीशा चढ़ाकर गाड़ी के अंदर बैठे रहते थे।

क्या ‘ड्रीम गर्ल’ ने मथुरा को बनाया ‘ड्रीम सिटी’!

कान्हा की नगरी मथुरा क्या पिछले लंबे समय से विकास की बाट जोह रही है और क्या मथुरा की सांसद को मथुरा के लिए इतना वक्त मिला कि वो वहां की सुध ले सके, दरअसल ये तमाम सवालात इसलिए खड़े हो रहे है, क्योंकि विकास के पैमाने पर सेलिब्रेटी वाले संसदीय क्षेत्रों में विकास का पैमाना सेट नहीं हो पाया, मथुरा को हाईवे से जोड़ना या फिर सड़कों और फ्लाईओवर के मामलों में काम होना तो उसमें तो सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का बड़ा हाथ है।

लेकिन मथुरा शहर और उसके देहात के इलाके मूलभूत सुविधाओं से महरूम है, विकास ना होने से कराह रहे है, मथुरा में सबसे बड़ी (Hema Malini) समस्या साफ-सफाई और ट्रैफिक व्यवस्था की है, यूपी में पर्यटन के लिहाज़ से मथुरा को नाम तो मिला लेकिन उस हिसाब से विकास नहीं हुआ, गंदगी का आलम देखकर बाहर से आने वाले पर्यटको की नज़रों में गलत तस्वीर जाती है।

ये तमाम बातें और उनके बीच मथुरावासियों के मन में उठता यही सवाल कि क्या ड्रीम गर्ल (Hema Malini) से वास्तव में मथुरा को ‘ड्रीम सिटी’ बनाया और जहां तक बात उनके 24 का चुनाव जीतने के बाद 100 दिन के रोडमैप में मथुरा आने का है तो मैडम हेमामालिनी बस गिनती के ही दिनों में आई, क्योंकि उनका ज्यादातर वक्त दिल्ली या मुंबई में गुज़रता है और मथुरा वाले लोगो का दिल की बात कहने के लिए इंतज़ार ओर ज्यादा लंबा इंतज़ार होता चला जाता है।

 

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