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Thursday, December 5, 2024
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ठगी के जाल में फंसा कानपुर का शिवेन्द्र, थाईलैंड के ख्वाब में बर्मा में 24 दिन की कैद, साइबर ठगों के चंगुल से भारत लौटे

Kanpur News: थाईलैंड में 80 हजार महीने की सैलरी के सपने लेकर कानपुर का शिवेंद्र घर से निकला था लेकिन उसे बैंकॉक के बजाय डिजिटल अरेस्ट गैंग ने बर्मा पहुंचा दिया। वहां 24 दिन की कैद के दौरान उसने अपने परिवार को चोरी-चुपके संदेश भेजा जिससे भारतीय दूतावास सक्रिय हुआ और अंततः वह घर लौट सका। शिवेंद्र ने कहा कि उन 24 दिनों ने उसके लिए जैसे 24 साल गुजार दिए।

हर पल जान का खतरा था और तेज आवाज में बोलने पर जुर्माना लगता था। वहां एक अलग ही तंत्र था जो कोई विरोध करता उसे सजा दी जाती थी। 15 दिन में इन लोगों ने विश्व भर से 125 करोड़ रुपए की ठगी की।

नदी पार करके ले जाया गया बर्मा बॉर्डर

शिवेंद्र ने बताया कि 31 अक्टूबर, 2023 को उन्हें दिल्ली बुलाया गया। वहां उन्हें एजेंट संदीप और करनदीप से मिलवाया गया। दोनों ने बताया कि थाईलैंड में एक बड़ी स्टॉक एक्सचेंज कंपनी के कॉल सेंटर में नौकरी का अवसर है। जिसमें महीने की सैलरी 80 हजार रुपए होगी। 3 नवंबर को उन्हें फ्लाइट में बैठाया गया और वे थाईलैंड पहुंचे। एयरपोर्ट पर उन्हें दो चीनी लोग मिले, जिन्होंने उन्हें कार में बैठाकर 450 किलोमीटर दूर ले जाया। वहां पर फिर से एक अन्य गाड़ी में बैठाया गया और अंततः नंदी तक पहुंचे। वहां गाड़ी छोड़कर उन्हें नाव पर नदी पार करनी पड़ी। इसके बाद कितनी दूर गाड़ी चली, इसका अंदाजा नहीं था लेकिन तीन कारें बदलने के बाद वे बर्मा सीमा पर पहुंचे। वहां उन्हें बताया गया कि इसे म्यांमार कहते हैं।

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काल सेंटर नहीं, साइबर ठगों का था ठिकाना

शिवेंद्र ने कहा- यहां पहुंचकर मुझे पता चला कि ये कोई चाइनीज कंपनी की जॉब नहीं, बल्कि साइबर जालसाजी करने वालों का ठिकाना है। यहां उन्होंने पूरा शहर बसाया हुआ था। यहां मॉल, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और थिएटर मौजूद थे। यहां पहुंचने के बाद जब मैंने वापस भेजने के लिए कहा तो उन्होंने धमकाया। वहां पहले से फंसे लोगों ने बताया कि यहां तेज बोलने पर 1.24 लाख बर्मीज क्यात का फाइन लगाया जाता है। वहां बर्मीज क्यात करेंसी चलती है। जिसकी वैल्यू इंडियन करेंसी से कम है।

8 घंटे की नौकरी में लोगों को ठगने का करना होता था काम

शिवेंद्र ने कहा- मैं इतना समझ चुका था कि यहां से निकलना मुश्किल है। मेरे अगले 30 दिन ट्रेनिंग के थे। मुझे जिस हॉल में ठहराया गया, वहां 8 बेड थे। 8 लोग एक हॉल में रहते थे। हर रोज सुबह 8.30 बजे जग जाते थे। 10 बजे तक कॉल सेंटर पहुंचना होता था। वहां पहुंचने पर चक दे इंडिया का इंस्पायर करने वाला गाना बजता था। उसके बाद ठगी करने के लिए फोन करना शुरू किए जाते थे। 10.30 बजे कैंटीन जाकर लंच करना होता था। 30 मिनट में ऑफिस वापस लौटना होता था। वहां पर सी फूड सबसे ज्यादा बनता था। मुझे सिर्फ चावल, ब्रेड, फ्रेंच फ्राइज और कभी-कभी पानी जैसी मूंग की दाल खाकर ही रहना पड़ता था।

11 बजे से फिर काम शुरू होता जो शाम 6.30 बजे तक चलता था। फिर 7 बजे यही खाना मिलता था। वहां एक बार मैंने विरोध किया तो चाइनीज बॉस ने कहा- यहां से बचकर जाने के 2 ऑप्शन हैं। 10 लाख रुपए दे दो। अगर नहीं दे सकते हो तो 2 लाख रुपए और 2 आदमियों का इंतजाम करके दो, तब इंडिया भेज देंगे।

हर रोज इवनिंग मीटिंग बताना होता था, कितनों को ठगा

शिवेन्द्र ने कहा- शाम को 7.30 बजे से रात 11 बजे एक और मीटिंग होती थी। इसका एजेंडा एक दिन में कितने लोगों को लूटा,,,ये डेटा होता था। उसकी रिपोर्ट बनती थी। इसके बाद हम लोग सोने जा सकते थे। अगले दिन फिर वही रूटीन होता था। शिवेन्द्र ने कहा- उन लोगों की अपनी आर्मी थी। मैं और मेरे जैसे लोग हमेशा सर्विलांस पर रहते थे। मुझे परिवार से बात तो करने देते, मगर सिर्फ इसी शर्त पर कि आपको उन्हें यह बताना होगा कि आप थाईलैंड में हैं और कॉल सेंटर में नौकरी कर रहे हैं।

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बिल्डिंग और उस जगह की फोटो लेने पर मनाही है। शक होने पर मोबाइल फोन की जांच होती थी। शिवेंद्र ने बताया कि पंजाब के एक लड़के ने कुछ महीने पहले भागने का प्रयास किया तो उसके हाथ-पैर तोड़ दिए गए और जेल में डाल दिया गया।

परिवार को एक मैसेज करने के बाद एक्टिव हुआ दूतावास

शिवेंद्र ने कहा- एक दिन मैंने अपने मोबाइल से अपने परिवार को अपने फंसने की पूरी डिटेल मैसेज कर दी। इसके बाद मैसेज डिलीट कर दिए। मगर उन लोगों को पता चल गया। उन्होंने पूछताछ के लिए बुलाया। मगर कोई सबूत नहीं मिला। इधर मेरे परिवार को मेरे फंसने की कहानी पता चल चुकी थी। मेरे बड़े भाई जितेंद्र ने अपने आस्ट्रेलिया के दोस्त से संपर्क किया। उन्होंने म्यांमार और बर्मा के भारतीय दूतावास के नंबर दिए। वहां पर पूरी जानकारी भेजी गई। इसके बाद दूतावास एक्टिव हुए। इधर कानपुर में भी एजेंटों के खिलाफ थ्प्त् दर्ज कराई गई।

कानपुर में छपी खबरों पर रखते थे नजर

शिवेंद्र ने कहा- सबसे खास बात यह रही कि कानपुर का मीडिया जो कुछ भी छाप रहा था, वो लोग वहां पढ़ते थे। मुझे एक बार फिर बुलाकर पूछताछ की गई। मगर मैंने संयम से काम लिया और किसी को कुछ नहीं बताया। मैंने बस यही जवाब दिया कि मैं यहां हूं वहां क्या हो रहा है मुझे नहीं मालूम। इस पर उन लोगों ने परिवार वालों से स्पीकर फोन पर बात कराने का प्रयास किया। मगर उस दिन किस्मत से शिवेंद्र के भाई और पिता ने इंटरनेट ऑफ कर रखा था। फिर एजेंट संदीप से स्पीकर फोन पर बात कराई गई तो शिवेंद्र ने गिरोह के सामने उससे पूछ लिया कि आपने मुझे चीटिंग कर भेजा है, थाईलैंड बताकर यहां फंसा दिया। इस पर संदीप ने अपनी गलती मानी।

तब कंपनी वालों को लगा कि इस मामले में दबाव बढ़ेगा और उनका पूरा सिस्टम खुलकर बाहर आ जाएगा। इस मामले में सांसद देवेंद्र सिंह भोले ने विदेश मंत्रालय को पत्र लिखा। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद तक मामला पहुंचा तो उन्होंने भी विदेश मंत्रालय से मामले में जल्द कार्रवाई करने के लिए कहा। इससे बाद दूतावास से लेकर दिल्ली मंत्रालय तक सब एक्टिव हो गए।

बैंकॉक हवाई अड्डे पर छोड़ा, पिता ने पैसे भेजे, तब इंडिया आया

शिवेन्द्र ने कहा- 19 नवंबर को अचानक मुझे सामान पैक रखने के लिए कहा गया। फिर 25 नवंबर को मुझे वहां से निकालकर उसी रूट से बैंकॉक एयरपोर्ट ले जाकर छोड़ दिया गया। उस वक्त मेरे पास पैसे भी नहीं थे। वहां से मैंने अपने पापा राजेश सिंह को फोन किया। उन्होंने मेरे अकाउंट में रुपए डलवाए। तब टिकट करवाकर मैं बैंकॉक से दिल्ली और फिर दिल्ली से 27 नवंबर की रात कानपुर पहुंच सका। शिवेन्द्र ने कहा- मैं जब आ रहा था तब कंपनी वालों ने मेरा मोबाइल रख लिया। उन्हें शक था कि फोन पर अब उनकी लोकेशन औऱ कॉर्डिनेट्स आ चुके होंगे। मुझे एक नया फोन दे दिया। पुलिस के मुताबिक उनके द्वारा दिए गए फोन की जांच कराई जाएगी।

जो धोखा करते उन्हें मगरमच्छ के आगे डाल देते

शिवेन्द्र ने बताया- साइबर ठगों ने मगरमच्छ पाल रखे थे। उन्होंने पूरा शहर तालाब के किनारे बसा रखा था। उसमें मगरमच्छ थे। कोई भी उनसे धोखाधड़ी करता तो वह उसे मारकर उसी तालाब में फेंक देते थे। वह भारतीयों के हर शब्द को जानने के लिए एक ट्रांसलेटर अपने साथ रखते हैं। मुंबई का मैडी नाम का व्यक्ति गिरोह से जुड़ा हुआ है और उनके लिए ट्रांसलेटर का काम करता है। शिवेन्द्र के मुताबिक, वहां पर सिर्फ इंडिया ही नहीं, फ्रांस, लंदन और मलेशिया के लोग भी फंसे हुए हैं। इंडिया में पंजाब के 10, राजस्थान के 8, बिहार के 4, हरियाणा और महाराष्ट्र के 5-5 लोग गिरोह के चुंगल में फंसे हैं।

वहां पर इस समय 15-20 हजार लोग रह रहे हैं। जिसमें से ज्यादातर डिजिटल अरेस्ट वाले कॉल सेंटर में काम करते हैं। शिवेन्द्र ने बताया, जिस दिन मुझे छोड़ा, उसी दिन एक फिलीपींस की युवती भी छोड़ी गई थी।शिवेन्द्र ने कहा- साइबर जालसाजों के पास 8 ऑडी, 7 मर्सिडीज, 4 ठडॅ और पांच पोर्श गाड़ियां खड़ी रहती थीं। बताया गया कि ये चोरी की थीं।

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